समकालीन कहानी :
मई माह के अन्त तक सुर्य देवता ने अपनी अग्रिशिखाओं को प्रचंड रूप से प्रदिप्त करना शुरू कर दिया। गर्मी से बेहाल हो सभी मानव, पशु-पक्षी परछाइयों की आगोश मे पनाह तलाशने लगे। मेघ देवता अभी बंगाल की खाड़ी में दूर कहीं सोया पड़ा था पर लोग अपने प्यासे नयन चक्षुओं द्वारा अभी से आकाश का चहूँ और से मुआयना करने लगे। बादलों का अभी कहीं नामोनिशान नहीं था। हिमाचल की निचली पहाडि़यों की कोख में बसे एक छोटे से गांव में पानी का अकाल सा पड़ गया। अबकी बार गर्मियों में पहाड़ से रिसने वाला गांव का पनियार पूरी तरह से सूख चुका था। अब लोगों को पहाड़ पार कर पानी लेने तीन किलोमीटर दूर दूसरे गांव के पनिहार तक जाना पड़ता था।
गांव के स्कूल की छटी कक्षा में पढ़ने वाला शिवराम बहुत जिद्दी था। उसकी दादी मां जब भी पनिहार से पानी लाती वह बार-बार नहाने की जिद्द करने लगता। उसकी दादी उसे समझाती ‘बेटा पानी की कमी है। बहुत थकहार कर दूसरे गांव से पानी लाना पड़ता है, तुम सुबह एक बार नहा कर स्कूल जाया करो।’
आज जब दादी मां जब पानी लेने चली तो शिवराम बोला- ‘दादी मां आज मैं भी तुम्हारे साथ पानी लाने चलता हूं।’
‘ठीक है बेटा आ जाओ, इससे तुम्हे ये भी पता चलेगा की पानी कितने कष्ट उठा कर घर तक लाना पड़ता है।’ दादी बोली तो शिवराम छोटी केन हाथ में उठा उसके पीछे-पीछे चल दिया। जब वह पहाड़ पार कर पनिहार पहुंचा तो बुरी तरह थक चुका था। ‘दादी मां यह तो बहुत दूर है। तुम हर रोज कैसे पानी लाती हो?’ वह दादी मां से बोला तो उसकी दादी ने हंसते हुए जवाब दिया- ‘बेटा मेरा बुढ़ा शरीर तेरे से कमजोर है। थक तो मैं भी जाती हूं पर तेरे मम्मी-पापा तो शहर में नोकरी कर रहे हैं, बकरी और घर के में नहाने, रोटी पकाने के लिए पानी तो लाना ही पड़ेगा।’
शिवराम ने पनिहार के उपर लगी शिवजी की मुर्ति को प्रणाम किया और अपनी केन पानी की भर दादी मां के साथ वापिस चल दिया। उसकी दादी रस्सी के सहारे एक बड़ी केन अपनी कमर पर लगा कर चल रही थी। जब वह घर से थोड़ी दूर रह गए तो पहाड़ से उतरते समय शिवराम की एक पत्थर से ठोकर लग गई। उसने बड़ी मुश्किल से खुद को नीचे लुढ़कने से बचाया मगर पानी की केन हाथ से छूट गई। उसका सारा पानी नीचे गिर गया।
‘दादी मां आज मुझे पानी की कीमत का पता चला।’ खाली केन ले घर आ शिवराम दादी मां से बोला।
‘ये तो तेरे साथ घटी छोटी सी घटना है। कोई बात नहीं पानी गिर गया मगर तेरे चोट लगने से बच गई। पानी कितना कीमती है, एक छोटी सी कहानी सुना मैं तुझे समझाती हूं।’ दादी मां शिवराम के पास बैठ उसके बालों पर हाथ फिराती बोली।
‘कहानी… सुनाओं दादी मां। आपने कितने दिन से मुझे कहानी नहीं सुनाई।’ कहानी का नाम सुनते ही शिवराम खुश हो गया। उसकी दादी अक्सर उसे बहुत अच्छी कहानियां सुनाया करती थी।
‘तो ध्यान से सुनो।’ उसकी दादी उसे कहानी सुनाने लगी।
एक बार दो नावों में सवार हो कुछ व्यक्ति सागर में किसी निश्चित स्थान की तरफ जा रहे थे मगर बीच रास्ते में वे भटक गए। उनकी सारी खाद्य सामग्री खत्म हो गई। खाने का प्रबन्ध तो उन्होनें मछली मार कर कर लिया मगर प्यास बुझाने के लिए पानी की समस्या हो गई। प्यास से बेहाल वे भटक कर एक निर्जन द्वीप पर पहुंच गए जहां मीठे पानी की एक नदी बह रही थी। उन्होने जी भरकर पानी पिया और कुछ दिन उसी द्वीप पर ठहर गए।
एक रोज एक नाव के व्यक्ति द्वीप पर टहलने निकल पडे़। कुछ दूर जाने पर वे यह देख कर आश्चर्य चकित रह गए कि वहां एक चट्टान के नीचे बड़ी पोटली में सोने, चांदी, हीरे रखे हुए थे। करोड़ों का माल था पर उन्हे उसको दूसरी नाव के व्यक्तियों में बांटने में परेशानी होने लगी। उन्होने तय किया कि चुपके से वहां से निकल चलें और माल को रास्ते में ही सब बांट लेंगे। उन्होने पोटली उठाई और दूसरे नाव सवारों से छुप कर अपनी नाव में बैठ गए मगर दूसरों को भी पता चल गया कि उनके पास पोटली में ऐसी कोई कीमती चीज है जिसे वे छुपा कर ले जा रहे हैं।
दूसरी नाव वालों ने रास्ते के सफर के लिए मश्कों में नदी का मीठा जल भरा और अपनी नाव में बैठ कर पहली नाव वालों के पीछे-पीछे चलने लगे। पहली नाव के सवार बहुत खुश थे। करोड़ो का सोना-चांदी, हीरे-जवाहरात उनके कब्जे में थे। बांटनें के बाद हरेक के पास इतना धन आना था जिससे वे सभी अमीर हो सकते थे मगर खशी और छुप कर भागने की हड़बड़ी में वे नदी से पानी लेना भूल गए। यह कोई मामुली भूल नही थी बल्कि भयंकर भूल थी। इसका पता उन्हे तब चला जब रास्ते में उन्हें प्यास लगने लगी।
सागर पानी से लबालब भरा था मगर खारा पानी किसी यात्री की प्यास कहां बुझाता है। पहली नाव वालों के पास माल बहुत था पर पानी नही था, प्यास लगी थी, सभी का गला सूख चुका था इसलिए उन्होने एक मत से फैंसला किया की मामूली सा माल दूसरी नाव वालों को देकर पानी खरीद लिया जाए। सो उन्होने अपनी नाव को दूसरी नाव के पास लगा कर कहा की हमें बहुत से हीरे-जवाहरात मिले हैं, तुम्हे हम एक-एक हीरा दे रहे हैं, हमारे पास पानी नहीं है इनके बदले तुम हमें पानी दे दो।
दूसरी नाव के व्यक्तियों के पास पानी तो था मगर रास्ता बहुत लम्बा था इसलिए यह निश्चित नही था कि उनका पानी मंजिल तक साथ दे सकेगा। वे समझदार थे सो उन्होने पानी देने से इन्कार कर दिया। पहली नाव सवार प्यास से बेहाल हो चुके थे। गर्मी बहुत तेज थी। उन्हें यह अहसास होने लगा मानो हल्क में कांटे चुभ रहे हों। वे इतनी दूर आ चुके थे की पानी के अभाव में पीछे द्वीप पर भी जिंदा नही लोट सकते थे।
उनमें से एक यात्री की प्यास जब ब्रदास्त से बाहर हो गई तो वह दूसरी नाव वालों से बोला- ‘तुम मेरे हिस्से का सारा माल ले लो पर कृप्या मुझे पानी पिला दो।’ कुछ देर में ही उस नाव के सभी यात्री रोने गिड़गिड़ाने लगे। ‘हमारा सारा माल ले लो मगर हमें पानी पिला दो।’ उन्हे अब पता चल रहा था कि पानी सोने-चांदी, हीरों से भी अनमोल है। मानव पानी पीकर ही जिंदा रह सकता है, हीरे निगल कर नही।
‘तो क्या दादी मां दूसरी नाव वालों ने उन्हे पानी दे दिया?’ शिवराम को आज पता चला था कि पानी की वास्तविक कीमत कितनी है।
‘हां बेटा। दूसरी नाव वालों को उनका दुख देखा नहीं गया, वे कपटी ही भले हों, पर थे तो उनके मित्र ही।’ फिर उन्होने दूसरी नाव वालों से माफी मांगते हुए सारा धन बराबर बांटा और थोड़ा-थोड़ा पानी इस्तेमाल करते हुए अपनी मंजिल पर पहुंच गए।
‘दादी मां मैं सुबह एक बार ही नहाया करूंगा, मुझे पता चल गया है कि पानी कितना कीमती होता है। मैं स्कूल से आकर तेरे साथ पानी लाया करूंगा और आज से ही पानी की बचत करना शुरू करूंगा।’ शिवराम बोला।
‘ठीक है बेटा इससे मेरा भी कुछ बोझा हल्का हो जाएगा। अब मैं भी थक जाती हूं।’ शिवराम की दादी उसके बाल सहलाती बोली।
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नफे सिंह कादयान
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