
“तेरी इतनी अच्छी लघुकथाओं को न लाइक मिलते हैं न ही वाहवाही भरे कमेंट! फिर भी तू खुश रहता है?”
क ने ख की पीठ पर धौल देते हुए कहा।
ख बोला, “हाँ, जितनी कम आमद, उतनी ही कम टेंशन!”
क ने कहा, “मेरी लघुकथा को सौ से कम लोग पसन्द करें तो मुझे उलझन होने लगती है। मैं बाक़ायदा इसका कारण खोजता हूँ और रचना को सुधारता हूँ।”
“कैसे सुधारते हो, बंधु ? क्या विचार मंथन करके..?” ख ने पूछा।
क आत्मप्रशंसा में बोला, “अरे नहीं ! कौन दिमाग खपायेगा ! बस बहुत ज्यादा पसंद किए गए पोस्ट के घटनाक्रम में से दो चार पंक्तियों को उड़ाकर, खुद की कथा में डाल देता हूँ । अब इतना हुनर तो है ही मुझमें।”
“बस इसी डर से तो मैं नहीं चाहता कि मेरा लिखा प्रचारित हो। लाइक फिर भी ठीक है, लेकिन जब ज्यादा शेयर होने लगता है तो मैं डरने लगता हूँ चोरों से।” ख ने शंका ज़ाहिर की।
“तूने मुझे चोर कहा !” क ने ख को घूरकर देखा।
ख बोला, “नहीं ! नहीं ! यार। मेरी ऐसी मज़ाल..! मैंने तो चोर-चोर मसौरे भाइयों को चोर कहा ! जानता ही है तू कि उल्टा चोर कोतवाल को भी डांट सकता है फेसबुक पर।”
क थोड़ी देर उसकी तरफ देखता हुआ सोचता रहा, फिर बोला,
“तब ठीक है।”
“अक्ल होती तो तू कॉपी छाप लेखक थोड़ी होता..!” सिर नीचे करके मन ही मन बुदबुदाया ख ! फिर उससे कहा, “यार, नकल में कितनी भी अकल लगाई जाए लेकिन नकल तो नकल ही है न ?”
क आत्मविश्वास से बोला, “अरे, जब
तक कोई कानून का दरवाज़ा नहीं खटखटाता है तब तक ये सब चलता रहेगा। और अकल गयी तेल लेने, हमारी प्रसिद्धि तो हो ही रही है। भाई, तेरे
पास अकल है लेकिन चार लोग भी तुझे नहीं जानते हैं। फिर इस अकल का क्या फायदा ?”
“ये तो अकल की बात की तूने ! यही अकल कुछ लिखने में लगाया कर। आखिर बकरे की अम्मा कब तक खैर मनाएगी!” ख ने मुस्कराकर कहा।
फिर कनखियों से उसे देखता हुआ मन ही मन बुदबुदाया – “आज तेरी नकल की पोस्ट पर रेड पड़ ही गयी है। कुछ ही देर में फेसबुक के सिपाही असल-नकल के सारे सबूतों के स्क्रीन शॉट ले लेंगे। फिर क्षण भर में तेरे सिर से प्रसिद्धि का भूत उतर जायेगा।”
क बोला, “कहाँ खो गया यार ! अकल को मार गोली, चल पिक्चर देखने चले।”
“कौन सी?”
“बा बा ब्लैक शीप
“नहीं यार ! रेड..(raid) !” ख ने मुस्कराते हुए कहा।
सविता मिश्रा ‘अक्षजा’
आगरा
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