शरीफों की शराफत का भरम अब तोड़ दूँ क्या मैं
बताओ या मुझे यारो शराफत छोड़ दूं क्या मैं
जमाने की नजर से देख लूँ जब मैं तरक्की को
जो पानी खेत पीते हैं शहर को मोड़ दूँ क्या मैं
अगर मैं मान लूं बातें मेरी बीवी की सब की सब
जो बूढ़े हैं मेरे वालिद उन्हें अब छोड़ दूं क्या मैं
कई वादे कई कसमें जो मैंने सर उठाई हैं
झटक के शीश को अपने सभी को तोड़ दूँ क्या मैं
कहीं मुल्ला कहीं पंडित लगाते आग हैं दिल में
करम जो कर रहें हैं ये वो भांडा फोड़ दूँ क्या मैं
संजय नायक “शिल्प”