मां तू कितनी अच्छी है
नई कोपले, नूतन कलिका,
पुष्प सृजन तू करती है।
मां तू कितनी अच्छी है।
पतझड़ अपने सहती है।
रक्षा करती धूप तपन से
हमें सींचती स्नेह बूंद से।
श्रृंग गर्त, उत्थान पतन
तू धारण करती सहज प्रकृति से।
मां तू कितनी अच्छी है,
स्नेह सभी को देती है पतझड़ तू ही सहती है।
मां तू कितनी अच्छी है।
हर पतझड़ की पीड़ा सहती,
शाख-शाख से छाया करती।
शरद शारदा की वीणा को,
ओढ़ बसंती झंकृत करती।
मां तू कितनी अच्छी है,
नव बसंत जो देती है,
पतझड़ अपने सहती है।
मां तू कितनी अच्छी है।
तूफानों की पीड़ा सहती,
श्रांत हमें पाकर दुख हरती।
हमें सुलाती थपकी देकर,
तपन मुक्त कर शीतल करती।
मां तू कितनी अच्छी है, तपन मुक्त जो करती है।
पतझड़ अपने सहती है। मां तू कितनी अच्छी है।
पुष्प बिखेर कुपित जीवन को,
नई गंध से प्रमुदित करती।
मां तू कितनी अच्छी है,
प्रमुदित सबको करती है।
पतझड़ अपने सहती है।
मां तू कितनी अच्छी है।
रात्रि-दिवस पोषित कर हमको,
कर देती नव विटप मधु सा।
प्रमुदित होता हृदय सृजन का,
तुमको पाता प्रकृति वधूसा।
मां तू कितनी अच्छी है,
मधु बरसाती रहती है,
पतझड़ अपने सहती है।
हे ममता प्रतिमूर्ति स्वरूपा !
मां तुझको है कोटि नमन।
जन्म-जन्म मा गोद में लेकर,
दो मुझको मधुहास पवन।
मां तू कितनी अच्छी है,
द्वेष कलह जो हरती है।
पतझड़ अपने सहती है।
मां तू कितनी अच्छी है।
अनुपमा उपाध्याय