जम्मू और कश्मीर
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यह लेख पूर्व राज्य जम्मू और कश्मीर के बारे में है। जम्मू और कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश के लिए, जम्मू और कश्मीर (केंद्र शासित प्रदेश) देखें।
जम्मू और कश्मीर
भारत का पूर्व राज्य
1954-2019
स्थिति जम्मू और कश्मीर
इतिहास
– स्थापना 1954
– अस्थापना 2019
जम्मू और कश्मीर 1954 से 2019 तक भारत का राज्य था। पाकिस्तान इसके उत्तरी इलाके (“पाक अधिकृत कश्मीर”) के हिस्सों पर क़ाबिज़ है, जबकि चीन ने अक्साई चिन पर कब्ज़ा किया हुआ है।[1] भारत इन कब्ज़ों को अवैध मानता है जबकि पाकिस्तान भारतीय जम्मू और कश्मीर को एक विवादित क्षेत्र मानता है। राज्य की आधिकारिक भाषा उर्दू है।
जम्मू नगर जम्मू प्रांत का सबसे बड़ा नगर तथा जम्मू-कश्मीर राज्य की जाड़े की राजधानी है। वहीं कश्मीर में स्थित श्रीनगर गर्मी के मौसम में राज्य की राजधानी रहती है। जम्मू और कश्मीर में जम्मू (पूंछ सहित), कश्मीर, बल्तिस्तान एवं गिलगित के क्षेत्र सम्मिलित हैं। इस राज्य का पाकिस्तान अधिकृत भाग को लेकर क्षेत्रफल 2,22,236 वर्ग कि॰मी॰ एवं उसे 1,38,124 वर्ग कि॰मी॰ है। यहाँ के निवासियों अधिकांश मुसलमान हैं, किंतु उनकी रहन-सहन, रीति-रिवाज एवं संस्कृति पर हिंदू धर्म की पर्याप्त छाप है। कश्मीर के सीमांत क्षेत्र पाकिस्तान, अफगानिस्तान, सिंक्यांग तथा तिब्बत से मिले हुए हैं। 5 अगस्त 2019 जम्मू कश्मीर को विधानसभा सहित केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा मिल गया है। लद्दाख को भी जम्मू कश्मीर से अलग करके अलग केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया है।[2]
इतिहास
मुख्य लेख: कश्मीर का इतिहास
प्राचीनकाल में कश्मीर (महर्षि कश्यप के नाम पर) हिन्दू और बौद्ध संस्कृतियों का पालना रहा है। मध्ययुग में मुस्लिम आक्रान्ता कश्मीर पर क़ाबिज़ हो गये। कुछ मुसलमान शाह और राज्यपाल हिन्दुओं से अच्छा व्यवहार करते थे 1947 ई. में कश्मीर का विलयन भारत में हुआ।[3] पाकिस्तान अथवा तथाकथित ‘आजाद कश्मीर सरकार’, जो पाकिस्तान की प्रत्यक्ष सहायता तथा अपेक्षा से स्थापित हुई, आक्रामक के रूप में पश्चिमी तथा उत्तरपश्चिमी सीमावर्ती क्षेत्रों में अधिकृत हुए किए हैं। भारत ने यह मामला 1 जनवरी 1948 को ही राष्ट्रसंघ में पेश किया था किंतु अभी तक निर्णय खटाई में पड़ा है। उधर लद्दाख में चीन ने भी लगभग 12,000 वर्ग मील क्षेत्र अधिकार जमा लिया है।
आज़ादी के समय कश्मीर में पाकिस्तान ने घुसपैठ करके कश्मीर के कुछ हिस्सों पर कब्जा कर लिया। बचा हिस्सा भारतीय राज्य जम्मू-कश्मीर का अंग बना। मुस्लिम संगठनों ने साम्प्रदायिक गठबंधन बनाने शुरु किये। साम्प्रदायिक दंगे 1931 (और उससे पहले से) से होते आ रहे थे। नेशनल कांफ़्रेस जैसी पार्टियों ने राज्य में मुस्लिम प्रतिनिधित्व पर ज़ोर दिया और उन्होंने जम्मू और लद्दाख क्षेत्रों की अनदेखी की। स्वतंत्रता के पाँच साल बाद जनसंघ से जुड़े संगठन प्रजा परिषद ने उस समय के नेता शेख अब्दुल्ला की आलोचना की। शेख अब्दुल्ला ने अपने एक भाषण में कहा कि “प्रजा परिषद भारत में एक धार्मिक शासन लाना चाहता है जहाँ मुस्लमानों के धार्मिक हित कुचल दिये जाएंगे।” उन्होने अपने भाषण में यह भी कहा कि यदि जम्मू के लोग एक अलग डोगरा राज्य चाहते हैं तो वे कश्मीरियों की तरफ़ से यह कह सकते हैं कि उन्हें इसपर कोई ऐतराज नहीं।
जमात-ए-इस्लामी के राजनैतिक टक्कर लेने के लिए शेख अब्दुल्ला ने खुद को मुस्लिमों के हितैषी के रूप में अपनी छवि बनाई। उन्होंने जमात-ए-इस्लामी पर यह आरोप लगाया कि उसने जनता पार्टी के साथ गठबंधन बनाया है जिसके हाथ अभी भी मुस्लिमों के खून से रंगे हैं। 1977 से कश्मीर और जम्मू के बीच दूरी बढ़ती गई।
1984 के चुनावों से लोगों – खासकर राजनेताओं – को ये सीख मिली कि मुस्लिम वोट एक बड़ी कुंजी है। प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के जम्मू दौरों के बाद फ़ारुख़ अब्दुल्ला तथा उनके नए साथी मौलवी मोहम्मद फ़ारुख़ (मीरवाइज़ उमर फ़ारुख़ के पिता) ने कश्मीर में खुद को मुस्लिम नेता बताने की छवि बनाई। मार्च 1987 में स्थिति यहाँ तक आ गई कि श्रीनगर में हुई एक रैली में मुस्लिम युनाईटेड फ़्रंट ने ये घोषणा की कि कश्मीर की मुस्लिम पहचान एक धर्मनिरपेक्ष देश में बची नहीं रह सकती। इधर जम्मू के लोगों ने भी एक क्षेत्रवाद को धार्मिक रूप देने का काम आरंभ किया। इसके बाद से राज्य में इस्लामिक जिहाद तथा साम्प्रदायिक हिंसा में कई लोग मारे जा चुके हैं। 1989 मे स्थानीय लोगों के सहयोग के कारण कश्मीर के मूलनिवासी हिंदूओं के ऊपर इस्लामिक आतंकवाद ने हमला शुरू कर दिया जिसके कारण हजारो हिंदूओ की हत्या की गई और 300000 से ज्यादा कश्मीरी पंडितो को पलायन करना पड़ा ।
विवाद
भारत की स्वतन्त्रता के समय महाराज हरि सिंह यहाँ के शासक थे, जो अपनी रियासत को स्वतन्त्र राज्य रखना चाहते थे। शेख़ अब्दुल्ला के नेतृत्व में मुस्लिम कॉन्फ़्रेंस (बाद में नेशनल कॉन्फ्रेंस) कश्मीर की मुख्य राजनैतिक पार्टी थी। कश्मीरी पंडित, शेख़ अब्दुल्ला और राज्य के ज़्यादातर मुसल्मान कश्मीर का भारत में ही विलय चाहते थे (क्योंकि भारत धर्मनिर्पेक्ष है)। पर पाकिस्तान को ये बर्दाश्त ही नहीं था कि कोई मुस्लिम-बहुमत प्रान्त भारत में रहे (इससे उसके दो-राष्ट्र सिद्धान्त को ठेस लगती थी)। इस लिये 1947-48 में पाकिस्तान ने कबाइली और अपनी छद्म सेना से कश्मीर में आक्रमण करवाया और क़ाफ़ी हिस्सा हथिया लिया।[4]
उस समय प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू ने मोहम्मद अली जिन्नाह से विवाद जनमत-संग्रह से सुलझाने की पेशक़श की, जिसे जिन्ना ने उस समय ठुकरा दिया क्योंकि उनको अपनी सैनिक कार्रवाई पर पूरा भरोसा था। महाराजा हरि सिंह ने शेख़ अब्दुल्ला की सहमति से भारत में कुछ शर्तों के तहत विलय कर दिया। भारतीय सेना ने जब राज्य का काफ़ी हिस्सा बचा लिया था, तब इस विवाद को संयुक्त राष्ट्र में ले जाया गया। संयुक्तराष्ट्र महासभा ने उभय पक्ष के लिए दो करार (संकल्प) पारित किये :-
पाकिस्तान तुरन्त अपनी सेना क़ाबिज़ हिस्से से खाली करे।
शान्ति होने के बाद दोनों देश कश्मीर के भविष्य का निर्धारण वहाँ की जनता की चाहत के हिसाब से करें।
भारतीय पक्ष
कश्मीर पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद संकल्प 47, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अध्याय VI के तहत यूएनएससी द्वारा पारित किया गया था, जो बाध्यकारी नहीं हैं और उनके पास कोई अनिवार्य प्रवर्तन योग्यता नहीं है। मार्च 2001 में, संयुक्त राष्ट्र के तत्कालीन महासचिव, कोफ़ी अन्नान ने भारत और पाकिस्तान की यात्रा के दौरान टिप्पणी की थी कि कश्मीर के प्रस्ताव केवल सलाहकार सिफारिशें हैं और पूर्वी तिमोर और इराक की तुलना में उनसे तुलना करना सेब और संतरे की तुलना करना था, क्योंकि संकल्प VII के तहत पारित किए गए थे, जो इसे यूएनएससी द्वारा लागू करने योग्य बनाते हैं। 2003 में, पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ ने घोषणा की कि पाकिस्तान कश्मीर के लिए संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों की मांग से पीछे हटना चाहता है।
इसके अलावा, भारत ने आरोप लगाया कि पाकिस्तान 13 अगस्त 1948 के संयुक्त राष्ट्र संकल्प के तहत आवश्यक कश्मीर क्षेत्र से अपनी सेना वापस ले कर पूर्व-परिस्थितियों को पूरा करने में असफल रहा, जिसने जनमत पर चर्चा की। पाकिस्तान ने अपना अधिकृत कश्मीरी भूभाग खाली नहीं किया है, बल्कि कुटिलतापूर्वक वहाँ कबाइलियों को बसा दिया है।
भारत ने लगातार कहा है कि संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव अब पूरी तरह से अप्रासंगिक हैं और कश्मीर विवाद एक द्विपक्षीय मुद्दा है और इसे 1972 के शिमला समझौता और 1999 लाहौर घोषणा के तहत हल किया जाना है।
1948-49 संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों को अब लागू नहीं किया जा सकता है, भारत के अनुसार, मूल क्षेत्र में बदलावों के कारण, कुछ हिस्सों के साथ “पाकिस्तान द्वारा चीन को सौंप दिया गया है और आजाद कश्मीर और उत्तरी क्षेत्रों में जनसांख्यिकीय परिवर्तन हुए हैं। “
जम्मू और कश्मीर की लोकतान्त्रिक और निर्वाचित संविधान-सभा ने 1957 में एकमत से ‘महाराजा द्वारा कश्मीर के भारत में विलय के निर्णय’ को स्वीकृति दे दी और राज्य का ऐसा संविधान स्वीकार किया जिसमें कश्मीर के भारत में स्थायी विलय को मान्यता दी गयी थी। (पाकिस्तान में लोकतंत्र का कितना सम्मान है, यह पूरा विश्व जानता है)
भारतीय संविधान के अन्तर्गत आज तक जम्मू कश्मीर में सम्पन्न अनेक चुनावों में कश्मीरी जनता ने वोट डालकर एक प्रकार से भारत में अपने स्थायी विलय को ही मान्यता दी है।
कश्मीर का भारत में विलय ब्रिटिश “भारतीय स्वातन्त्र्य अधिनियम” के तहत क़ानूनी तौर पर सही था।
पाकिस्तान अपनी भूमि पर आतंकवादी शिविर चला रहा है (ख़ास तौर पर 1989 से) और कश्मीरी युवकों को भारत के ख़िलाफ़ भड़का रहा है। ज़्यादातर आतंकवादी स्वयं पाकिस्तानी नागरिक या तालिबानी अफ़ग़ान ही हैं। ये और कुछ दिग्भ्रमित कश्मीरी युवक मिलकर इस्लाम के नाम पर भारत के ख़िलाफ़ छेड़े हुए हैं।
राज्य को संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत स्वायत्तता प्राप्त है।
भारतीय संविधान में जम्मू और कश्मीर की विशेष स्थिति
भारत के संवैधानिक प्रावधान स्वतः जम्मू तथा कश्मीर पर लागू नहीं होते। केवल वही प्रावधान जिनमें स्पष्ट रूप से कहा जाए कि वे जम्मू कश्मीर पर लागू होंगे, उस पर लागू होते हैं। जम्मू कश्मीर की विशेष स्थिति का ज्ञान इन तथ्यों से होता है-
1. जम्मू कश्मीर संविधान सभा द्वारा निर्मित राज्य संविधान से वहाँ का कार्य चलता है। यह संविधान जम्मू कश्मीर के लोगों को राज्य की नागरिकता भी देता है। केवल इस राज्य के नागरिक ही संपत्ति खरीद सकते हैं या चुनाव लड़ सकते हैं या सरकारी सेवा ले सकते हैं।
2. भारतीय संसद जम्मू कश्मीर से संबंध रखने वाला ऐसा कोई कानून नहीं बना सकती है जो इसकी राज्य सूची का विषय हो।
3. अवशेष शक्ति जम्मू कश्मीर विधान सभा के पास होती है।
4. इस राज्य पर सशस्त्र विद्रोह की दशा में या वित्तीय संकट की दशा में आपात काल लागू नहीं होता है।
5. भारतीय संसद राज्य का नाम क्षेत्र सीमा बिना राज्य विधायिका की स्वीकृति के नहीं बदलेगी।
6. राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति राज्य मुख्यमंत्री की सलाह के बाद करेंगे।
7. संसद द्वारा पारित निवारक निरोध नियम राज्य पर अपने आप लागू नहीं होगा।
8. राज्य की पृथक दंड संहिता तथा दंड प्रक्रिया संहिता है।
भूगोल
वैष्णो देवी भवन
तिक्से गोम्पा
हरमुख पर्वत
कश्मीर के अधिकांश क्षेत्र पर्वतीय हैं। केवल दक्षिण-पश्चिम में पंजाब के मैदानों का क्रम चला आया है। कश्मीर क्षेत्र की प्रधानतया दो विशाल पर्वतश्रेणियाँ हैं। सुदूर उत्तर में काराकोरम तथा दक्षिण में हिमालय जास्कर श्रेणियाँ हैं जिनके मध्य सिंधु नदी की सँकरी घाटी समाविष्ट है। हिमालय की प्रमुख श्रेणी की दक्षिणी ढाल की ओर संसारप्रसिद्ध कश्मीर की घाटी है जो दूसरी ओर पीर पंजाल की पर्वतश्रेणी से घिरी हुई है। पीर पंजाल पर्वत का क्रम दक्षिण में पंजाब की सीमावर्ती नीची तथा अत्यधिक विदीर्ण तृतीय युगीन पहाड़ियों तक चला गया है।
प्राकृतिक दृष्टि से कश्मीर को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है :
जम्मू क्षेत्र की बाह्य पहाड़ियाँ तथा मध्यवर्ती पर्वतश्रेणियाँ,
कश्मीर घाटी,
सुदूर बृहत् मध्य पर्वतश्रेणियाँ जिनमें लद्दाख, बल्तिस्तान एवं गिलगित के क्षेत्र सम्मिलित हैं।
कश्मीर का अधिकांश भाग चिनाव, झेलम तथा सिंधु नदी की घाटियों में स्थित है। केवल मुज़ताघ तथा कराकोरम पर्वतों के उत्तर तथा उत्तर-पूर्व के निर्जन तथा अधिकांश अज्ञात क्षेत्रों का जल मध्य एशिया की ओर प्रवाहित होता है। लगभग तीन चौथाई क्षेत्र केवल सिंधु नदी की घाटी में स्थित है। जम्मू के पश्चिम का कुछ भाग रावी नदी की घाटी में पड़ता है। पंजाब के समतल मैदान का थोड़ा सा उत्तरी भाग जम्मू प्रांत में चला आया है। चिनाव घाटी में किश्तवाड़ तथा भद्रवाह के ऊँचे पठार एवं नीची पहाडियाँ (कंडी) और मैदानी भाग पड़ते हैं। झेलम की घाटी में कश्मीर घाटी, निकटवर्ती पहाड़ियाँ एवं उनके मध्य स्थित सँकरी घाटियाँ तथा बारामूला-किशनगंगा की संकुचित घाटी का निकटवर्ती भाग सम्मिलित है। सिंधु नदी की घाटी में ज़ास्कर तथा रुपशू सहित लद्दाख क्षेत्र, बल्तिस्तान, अस्तोद एवं गिलगित क्षेत्र पड़ते हैं। उत्तर के अर्धवृत्ताकार पहाड़ी क्षेत्र में बहुत से ऊँचे दर्रे हैं। उसके निकट ही नंगा पर्वत (26,182 फुट) है। पंजाल पर्वत का उच्चतम शिखर 15,523 फुट ऊँचा है।
झेलम या बिहत, वैदिक काल में ‘वितस्ता’ तथा यूनानी इतिहासकारों एवं भूगोलवेत्ताओं के ग्रंथों में ‘हाईडसपीस’ के नाम से प्रसिद्ध है। यह नदी वेरिनाग से निकलकर कश्मीरघाटी से होती हुई बारामूला तक का 75 मील का प्रवाहमार्ग पूरा करती है। इसके तट पर अनंतनाग, श्रीनगर तथा बारामूला जैसे प्रसिद्ध नगर स्थित हैं। राजतरंगिणी के वर्णन से पता चलता है कि प्राचीन काल में कश्मीर एक बृहत् झील था जिसे ब्रह्मासुत मारीचि के पुत्र कश्यप ऋषि ने बारामूला की निकटवर्ती पहाड़ियों को काटकर प्रवाहित कर दिया। इस क्षेत्र के निवासी नागा, गांधारी, खासा तथा द्रादी कहलाते थे। खासा जाति के नाम पर ही कश्मीर (खसमीर) का नामकरण हुआ है, परीपंजाल तथा हिमालय की प्रमुख पर्वतश्रेणियों के मध्य स्थित क्षेत्र को कश्मीर घाटी कहते हैं। यह लगभग 85 मील लंबा तथा 25 मील चौड़ा बृहत् क्षेत्र है। इस घाटी में चबूतरे के समान कुछ ऊँचे समतल क्षेत्र मिलते हैं जिन्हें करेवा कहते हैं। धरातलीय दृष्टि से ये क्षेत्र अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
कश्मीर घाटी में जल की बहुलता है। अनेक नदी नालों और सरोवरों के अतिरिक्त कई झीलें हैं। वुलर मीठे पानी की भारतवर्ष में विशालतम झील है। कश्मीर में सर्वाधिक मछलियाँ इसी झील से प्राप्त होती हैं। स्वच्छ जल से परिपूर्ण डल झील तैराकी तथा नौकाविहार के लिए अत्यंत रमणीक है। तैरते हुए छोटे-छोटे खत सब्जियाँ उगाने के व्यवसाय में बड़ा महत्व रखते हैं। कश्मीर अपनी अनुपम सुषमा के कारण नंदनवन कहलाता है। भारतीय कवियों ने सदा इसकी सुंदरता का बखान किया है।
पीरपंजाल की श्रेणियाँ दक्षिण-पश्चिमी मानसून को बहुत कुछ रोक लेती हैं, किंतु कभी-कभी मानसूनी हवाएँ घाटी में पहुँचकर घनघोर वर्षा करती हैं। अधिकांश वर्षा वसंत ऋतु में होती है। वर्षा ऋतु में लगभग 9.7फ़फ़ तथा जनवरी-मार्च में 8.1फ़फ़ वर्षा होती है। भूमध्यसागरी चक्रवातों के कारण हिमालय के पर्वतीय क्षेत्र में, विशेषतया पश्चिमी भाग में, खूब हिमपात होता है। हिमपात अक्टूबर से मार्च तक होता रहता है। भारत तथा समीपवर्ती देशों में कश्मीर तुल्य स्वास्थ्यकर क्षेत्र कहीं नहीं है। पर्वतीय क्षेत्र होने के कारण यहाँ की जलवायु तथा वनस्पतियाँ भी पर्वतीय हैं।
कश्मीर घाटी की प्रसिद्ध फसल चावल है जो यहाँ के निवासियों का मुख्य भोजन है। मक्का, गेहूँ, जौ और जई भी क्रमानुसार मुख्य फसलें हैं। इनके अतिरिक्त विभिन्न फल एवं सब्जियाँ यहाँ उगाई जाती हैं। अखरोट, बादाम, नाशपाती, सेब, केसर, तथा मधु आदि का प्रचुर मात्रा में निर्यात होता है। कश्मीर केसर की कृषि के लिए प्रसिद्ध है। शिवालिक तथा मरी क्षेत्र में कृषि कम होती है। दून क्षेत्र में विभिन्न स्थानों पर अच्छी कृषि होती है। जनवरी और फरवरी में कोई कृषि कार्य नहीं होता। यहाँ की झीलों का बड़ा महत्व है। उनसे मछली, हरी खाद, सिंघाड़े, कमल एवं मृणाल तथा तैरते हुए बगीचों से सब्जियाँ उपलब्ध होती हैं। कश्मीर की मदिरा मुगल बादशाह बाबर तथा जहाँगीर की बड़ी प्रिय थी किंतु अब उसकी इतनी प्रसिद्धि नहीं रही। कृषि के अतिरिक्त, रेशम के कीड़े तथा भेड़ बकरी पालने का कार्य भी यहाँ पर होता है।
इस राज्य में प्रचुर खनिज साधन हैं किंतु अधिकांश अविकसित हैं। कोयला, जस्ता, ताँबा, सीसा, बाक्साइट, सज्जी, चूना पत्थर, खड़िया मिट्टी, स्लेट, चीनी मिट्टी, अदह (ऐसबेस्टस) आदि तथा बहुमूल्य पदार्थों में सोना, नीलम आदि यहाँ के प्रमुख खनिज हैं।
श्रीनगर का प्रमुख उद्योग कश्मीरी शाल की बुनाई है जो बाबर के समय से ही चली आ रही है। कश्मीरी कालीन भी प्रसिद्ध औद्योगिक उत्पादन है। किंतु आजकल रेशम उद्योग सर्वप्रमुख प्रगतिशील धंधा हो गया है। चाँदी का काम, लकड़ी की नक्काशी तथा पाप्ये-माशे यहाँ के प्रमुख उद्योग हैं। पर्यटन उद्योग कश्मीर का प्रमुख धंधा है जिससे राज्य को बड़ी आय होती है। लगभग एक दर्जन औद्योगिक संस्थान स्थापित हुए हैं परंतु प्रचुर औद्योगिक क्षमता के होते हुए भी बड़े उद्योगों का विकास अभी तक नहीं हो पाया है।
पर्वतीय धरातल होने के कारण यातायात के साधन अविकसित हैं। पहले बनिहाल दर्रे (9,290 फुट) से होकर जाड़े में मोटरें नहीं चलती थीं किंतु दिसंबर, 1956 ई. में बनिहाल सुरंग के पूर्ण हो जाने के बाद वर्ष भर निरंतर यातायात संभव हो गया है। पठानकोट द्वारा श्रीनगर का नई दिल्ली से नियमित हवाई संबंध है। अब पठानकोट से जम्मू तक रेल की भी सुविधा हो गई है। लेह तक भी जीप के चलने योग्य सड़क निर्मित हो गई है। वहाँ भी एक हवाई अड्डा है।
समुद्रतल से 5,200 फुट की ऊँचाई पर स्थित श्रीनगर जम्मू-कश्मीर की राजधानी तथा राज्य का सबसे बड़ा नगर है। इस नगर की स्थापना सम्राट् अशोकवर्धन ने की थी। यह झेलम नदी के दोनों तट पर बसा हुआ है। डल झील तथा शालीमार, निशात आदि रमणीक बागों के कारण इस नगर की शोभा द्विगुणित हो गई है। अत: इसकी गणना एशिया के सर्वाधिक सुंदर नगरों में होती है। अग्निकांड, बाढ़ तथा भूकंप आदि से इस नगर को अपार क्षति उठानी पड़ती है। यहाँ के उद्योग धंधे राजकीय हैं। कश्मीर घाटी तथा श्रीनगर का महत्व इसलिए भी अधिक है कि हिमालय के पार जानेवाले रास्तों के लिए ये प्रमुख पड़ाव हैं।
सिंधु-कोहिस्तान क्षेत्र में नंगा पर्वत संसार के सर्वाधिक प्रभावशाली पर्वतों में से एक है। सिंधु के उस पार गिललित का क्षेत्र पड़ता है। रूसी प्रभावक्षेत्र से भारत को दूर रखने के हेतु अंग्रेजी सरकार ने कश्मीर के उत्तर में एक सँकरा क्षेत्र अफगानिस्तान के अधिकार में छोड़ दिया था। गिलगित तथा सीमावर्ती क्षेत्रों में जनसंख्या बहुत कम है। गिलगित से चारों ओर पर्वतीय मार्ग जाते हैं। यहाँ पर्वतक्षेत्रीय फसलें तथा सब्जियाँ उत्पन्न की जाती हैं। बृहत् हिमालय तथा ज़ास्कर पर्वत-श्रेणियों के क्षेत्र में जनसंख्या कम तथा घुमक्कड़ी है। 15,000 फुट ऊँचाई पर स्थित कोर्जोक नामक स्थान संसार का उच्चतम कृषकग्राम माना जाता है। लद्दाख एवं बल्तिस्तान क्षेत्र में लकड़ी तथा ईधंन की सर्वाधिक आवश्यकता रहती है। बल्तिस्तान में अधिकांशत: मुसलमानों तथा लद्दाख में बौद्धों का निवास है। अधिकांश लोग घुमक्कड़ों का जीवन यापन करते हैं। इन क्षेत्रों का जीवन बड़ा कठोर है। कराकोरम क्षेत्र में श्योक से हुंजा तक के छोटे से भाग में 24,000 फुट से ऊँचे 33 पर्वतशिखर वर्तमान हैं। अत: उक्त क्षेत्र को ही, न कि पामीर को, ‘संसार की छत’ मानना चाहिए। अनेक कठिनाइयों से भरे इन क्षेत्रों से किसी समय तीर्थयात्रा के प्रमुख मार्ग गुजरते थे।
भूभाग का वर्गीकरण
भारतीय प्रशासित जम्मू और कश्मीर
भारतीय जम्मू और कश्मीर राज्य के तीन मुख्य अंचल हैं : जम्मू (हिन्दू बहुल), कश्मीर (मुस्लिम बहुल) और लद्दाख़ (बौद्ध बहुल)। प्रदेश की ग्रीष्मकालीन राजधानी श्रीनगर है और शीतकालीन राजधानी जम्मू-तवी। कश्मीर को ‘दुनिया का स्वर्ग’ माना गया है। अधिकांश जिले हिमालय पर्वत से ढके हुए हैं। मुख्य नदियाँ हैं सिन्धु, झेलम और चेनाब। यहाँ कई ख़ूबसूरत झीलें हैं जैसे: डल, वुलर और नगीन।
संभाग और ज़िले
राज्य तीन संभागो में बटा हुआ है; जम्मू, कश्मीर घाटी और लद्दाख। राज्य में जिलों की संख्या 20 है।
जम्मू संभाग
जिले का नाम ज़िला मुख्यालय क्षेत्रफल(किमी²) जनसंख्या
2001 जनगणना जनसंख्या
2011 जनगणना[5][6]
डोडा जिला डोडा 2,306 3,20,256 4,09,576
जम्मू जिला जम्मू 3,097 13,43,756 15,26,406
कठुआ जिला कठुआ 2,651 5,50,084 6,15,711
किश्तवाड़ जिला किश्तवाड़ 7,737[7] 1,90,843 2,31,037
पुंछ जिला पुंछ 1,674 3,72,613 4,76,820
राजौरी जिला राजौरी 2,630 4,83,284 6,19,266
रामबन जिला रामबन 1,329 1,80,830 2,83,313
रियासी जिला रियासी 1,719 2,68,441 3,14,714
सांबा जिला सांबा 904 2,45,016 3,18,611
उधमपुर जिला उधमपुर 4,550 4,75,068 5,55,357
कुल 26,293 44,30,191 53,50,811
कश्मीर घाटी संभाग
जिले का नाम ज़िला मुख्यालय क्षेत्रफल(किमी²) जनसंख्या
2001 जनगणना जनसंख्या
2011 जनगणना
अनन्तनाग जिला अनन्तनाग 3,984 7,34,549 10,69,749
बांदीपोरा जिला बांदीपोरा 398 3,16,436 3,85,099
बारामूला जिला बारामूला 4,588 8,53,344 10,15,503
बड़गांव जिला बड़गांव 1,371 6,29,309 7,55,331
गान्दरबल ज़िला गांदरबल 259 2,11,899 2,97,003
कुलगाम जिला कुलगाम 1,067 4,37,885 4,23,181
कुपवाड़ा जिला कुपवाड़ा 2,379 6,50,393 8,75,564
पुलवामा जिला पुलवामा 1,398 4,41,275 5,70,060
शोपियां जिला शोपियां 612.87 2,11,332 2,65,960
श्रीनगर जिला श्रीनगर 2,228 9,90,548 12,50,173
कुल 15,948 54,76,970 69,07,623
लद्दाख संभाग
जिले का नाम ज़िला मुख्यालय क्षेत्रफल(किमी²) जनसंख्या
2001 जनगणना जनसंख्या
2011 जनगणना
कारगिल जिला Kargil 14,036 1,19,307 1,43,388
लेह जिला लेह 45,110 1,17,232 1,47,104
कुल 59,146 2,36,539 2,90,492
जनसांख्यिकी
शहरी जनसंख्या
जम्मू और कश्मीर की कुल जनसंख्या में से, 27.38% लोग शहरी क्षेत्रों में रहते हैं। शहरी क्षेत्रों में आबादी का कुल आंकड़ा 3,433,242 है, जिसमें से 1,866,185 पुरुष हैं जबकि शेष 1,567,057 महिलाएं हैं। पिछले 10 वर्षों में शहरी आबादी में 27.38 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। जम्मू और कश्मीर के शहरी क्षेत्रों में लिंग अनुपात 840 महिलाओं की प्रति 1000 पुरुषों की थी। बच्चे के लिए (0-6) लिंग अनुपात शहरी क्षेत्र के लिए आंकड़ा प्रति 1000 लड़कों में 850 लड़कियां थीं। जम्मू और कश्मीर के शहरी क्षेत्रों में रहने वाले कुल बच्चे (0-6 आयु) 425,8 9 7 थे। शहरी क्षेत्र की कुल आबादी में, 12.41% बच्चे (0-6) थे शहरी क्षेत्रों के लिए जम्मू और कश्मीर में औसत साक्षरता दर 77.12 प्रतिशत थी, जिसमें पुरुष 83.9 2% साक्षर थे जबकि महिला साक्षरता 56.65% थी। जम्मू और कश्मीर के शहरी क्षेत्र में कुल साक्षर 2,31 9, 283 थे।[8]
ग्रामीण जनसंख्या
जम्मू और कश्मीर राज्य की कुल आबादी में से, लगभग 72.62 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों के गांवों में रहते हैं। वास्तविक संख्या में, पुरुषों और महिलाओं क्रमशः 4,774,477 और 4,333,583 थे। जम्मू और कश्मीर राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों की कुल आबादी 9,108,060 थी। इस दशक (2001-2011) के लिए दर्ज जनसंख्या वृद्धि दर 72.62% थी जम्मू और कश्मीर राज्य के ग्रामीण इलाकों में, प्रति 1000 पुरुषों में महिला लिंग अनुपात 908 था, जबकि बच्चे (0-6 आयु) के लिए प्रति 1000 लड़कों में 865 लड़कियां थीं। जम्मू और कश्मीर में, 1,593,008 बच्चे (0-6) ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं। बाल जनसंख्या कुल ग्रामीण आबादी का 17.4 9 प्रतिशत है। जम्मू और कश्मीर के ग्रामीण इलाकों में, पुरुषों और महिलाओं की साक्षरता दर 73.76% और 46.00% थी। ग्रामीण क्षेत्रों में जम्मू और कश्मीर में औसत साक्षरता दर 63.18 प्रतिशत थी। ग्रामीण क्षेत्रों में कुल साक्षरता 4,747, 9 50 थी[8]
विवरण 2011 2001
जनसंख्या (लगभग) 1.25 करोड़ 1.01 करोड़
वास्तविक जनसंख्या 12,541,302 10,143,700
पुरुष 6,640,662 5,360,926
महिलाएं 5,900,640 4,782,774
जनसंख्या वृद्धि 23.64% 29.04%
कुल जनसंख्या का प्रतिशत 1.04% 0.99%
लिंग अनुपात 889 892
बाल लिंग अनुपात 862 941
जनसंख्या घनत्व (प्रति वर्ग किमी) 56 46
जनसंख्या घनत्व (प्रति वर्ग मील) 146 118
क्षेत्रफल (वर्ग किमी) 222,236 222,236
क्षेत्रफल (वर्ग मील) 85,806 85,806
कुल बाल जनसंख्या (0-6 आयु) 2,018,905 1,485,803
पुरुष जनसंख्या (0-6 आयु) 1,084,355 765,394
महिला जनसंख्या (0-6 आयु) 934,550 720,409
साक्षरता 67.16 % 55.52 %
पुरुष साक्षरता 76.75 % 66.60 %
महिला साक्षरता 56.43 % 43.00 %
कुल साक्षर 7,067,233 4,807,286
पुरुष साक्षर 4,264,671 3,060,628
महिला साक्षर 2,802,562 1,746,658
विवरण ग्रामीण शहरी
जनसंख्या (%) 72.62 % 27.38 %
कुल जनसंख्या 9,108,060 3,433,242
पुरुष जनसंख्या 4,774,477 1,866,185
महिला जनसंख्या 4,333,583 1,567,057
जनसंख्या वृद्धि 19.42 % 36.42 %
लिंग अनुपात 908 840
बाल लिंग अनुपात (0-6) 865 850
बाल जनसंख्या (0-6) 1,593,008 425,897
बाल प्रतिशत (0-6) 17.49 % 12.41 %
साक्षर 4,747,950 2,319,283
औसत साक्षरता 63.18 % 77.12 %
पुरुष साक्षरता 73.76 % 83.92 %
महिला साक्षरता 46.00 % 56.65 %
जम्मू जनगणना 2011 आंकड़े
जम्मू शहर नगर निगम द्वारा शासित है जो जम्मू महानगरीय क्षेत्र के अंतर्गत आता है। जम्मू शहर जम्मू और कश्मीर राज्य में स्थित है। भारत की जनगणना 2011 के अनुसार जम्मू की जनसंख्या 502,197 है; इनमें से पुरुष और महिला क्रमशः 263,141 और 23 9, 566 हैं। हालांकि जम्मू शहर की जनसंख्या 502,197 है; इसकी शहरी / महानगर जनसंख्या 657,314 है जिसमें से 352,038 पुरुष और 305,276 महिलाएं हैं.[9] जम्मू महानगरीय क्षेत्र- बारि ब्रह्मा, बार्नेय, भोर, चक गुलममी, चक जालु, चक कालू, चानोर, छड़ी बेजा, छिनी कमला, छैनी रामन, छ्ता, चावाड़ी, देली, धर्मपाल, गडी गिर, गंगाई, गुजराई, हज़री बाग, जम्मू, जम्मू, कामिनी , केरन, खानपुर, मुथी, नागराटा, नरवाल बाला, रायपुर, रक्षा दल, रक्षा गडी गिर, राखी रायपुर, सतवारी, सैटानी और सुजवान।
विवरण
शहर जम्मू
नियंत्रक ढांचा नगर निगम
शहरी संकुलन जम्मू मेट्रोपॉलिटन
राज्य जम्मू और कश्मीर
जम्मू शहर कुल पुरुष महिलाएं
City + Out वृद्धि s 576,198 303,689 272,509
शहर की जनसंख्या 502,197 263,141 239,056
साक्षर 411,558 222,438 189,120
बाल (0-6 आयु) 45,642 24,931 20,711
औसत साक्षरता (%) 90.14 % 93.38 % 86.62 %
लिंग अनुपात 908
बाल लिंग अनुपात 831
जम्मू शहर में 81.1 9% अनुयायियों के साथ हिंदू धर्म बहुसंख्यक धर्म है। जम्मू शहर में सिख धर्म का दूसरा सबसे लोकप्रिय धर्म 8.83% है। जम्मू शहर में, इस्लाम के बाद 7.95%, जैन धर्म 0.33%, क्रिरिअति 8.83% और बौद्ध धर्म 8.83% है। लगभग 0.02% ने ‘अन्य धर्म’ कहा, लगभग 0.28% ने ‘कोई विशेष धर्म’ कहा।
विवरण कुल प्रतिशत
हिन्दू 467,795 81.19 %
सिख 50,870 8.83 %
मुसलमान 45,815 7.95 %
ईसाई 7,800 1.35 %
जैन 1,910 0.33 %
कोई नहीं 1,611 0.28 %
बुद्ध 273 0.05 %
अन्य 124 0.02 %
जम्मू मेट्रोपॉलिटन कुल पुरुष महिलाएं
जनसंख्या 657,314 352,038 305,276
साक्षर 529,625 294,586 235,039
बाल(0-6) 62,488 34,180 28,308
औसत साक्षरता (%) 89.04 % 92.68 % 84.86 %
लिंग अनुपात 867
बाल लिंग अनुपात 828
अर्थव्यवस्था
पर्यटन जम्मू और कश्मीर की अर्थव्यवस्था का आधार रहा है। गत वर्षों से जारी आतंकवाद ने यहां की अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी थी। अब हालात में कुछ सुधार हुआ है। दस्तकारी की चीजें, कालीन, गर्म कपड़े तथा केसर आदि मूल्यवान मसालों का भी यहां की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान है।
वर्ष सकल घरेलू उत्पाद
1980 11,860
1985 22,560
1990 36,140
1995 80,970
2000 147,500