हम उस अति प्राचीन सनातन वैदिक धर्म के संवाहक हैं जो मानव सभ्यताओं की बनती बिगड़ती परम्पराओं के मध्य नैतिक दृढ़ता शौर्य शुचिता के साथ समूची मानव प्रजाति को एक सूत्र में पिरोने का कार्य करता आया है। जिसकी बुनियाद ही ‘वसुधैव कुटुम्बकम पर’ टिकी हुयी है। जिसके गौरवशाली इतिहास को समय समय पर दृढ़ प्रतिज्ञ महापुरुषों ने अनन्त सदियों से सतत अपने कंधों पर उठाकर उस शान्ति सौहार्द की जीवन मशाल को आर्य भूमि पर जलाये रखा। दुनिया के अनेकों आक्रान्ताओं से लोहा लेते हुये अनगिनत बलिदानी वीर अपने लहू से धरती को सींचते रहे मगर अस्तित्व को मिटने नहीं दिया।
दुनिया की तमाम धर्मान्धतायें अनेकों कोशिशों के बाद भी उस अस्तित्व को मिटाने में असफल रहीं। क्योंकि अपनी आन बान और वचन पर अडिग संगठित शक्ति अपनी सहिष्णुता को कभी कायरता में परिवर्तित नहीं होने दिया।
परन्तु पश्चिमी गोरों के आर्य भूमि पर काबिज होते ही उनके छल कपट के वार ने उस नैतिक आधार को ही निशाना बनाया जिस पर हमारे समाज का समूचा ढाँचा ही टिका हुआ था। विलासिता का लोभ दिखाकर ऊँच नीच भेद भाव की ऐसी खांईं खोदनी शुरू की जिसमें न चाहते हुये भी हम गिरते चले गये।
बलिदान होने की बजाय हमने आत्म हत्या का रास्ता खुशी खुशी चुन लिया। इतिहास के गौरव में हलचल भी हुयी अनेकों बलिदानी वीरों ने आहुतियां दीं अंग्रेजों के पांव उखड़ने भी लगे परन्तु तब तक हममें वे छल कपट का बीजारोपण भली भाँति कर चुके थे। जाते जाते उन्होंने अपनी प्रतिछाया हमें सौंपी, साथ ही कौमी उन्माद का दानव भी समानान्तर खड़ा कर दिया। उनकी छल कपट की नीतियों के सहारे विलासी चालबाजियां धीरे धीरे शासन पर काबिज होती गयीं सेकुलर नामक चादर ओढ़कर अपनी विलासिता में डूब गयीं।
सहिष्णुता आवरण बन गयी कायरता की। सदियों गुलामी की मार झेलने वाले समाज का छल कपट लोभ में फँसकर आन्तरिक आत्म विस्वास डगमगा जाना स्वाभाविक था। षडयन्त्रकारी तथा पीछे से वार करने वाली शक्तियों को फलने फूलने का मौका सहज ही उपलब्ध होता गया। सज्जनता प्रताड़ित होकर भय में जीने को विवस हुयी जिससे हमने कायरता का दामन थाम लिया। हम उदासीन हो गये अपने अस्तित्व के धीरे धीरे क्षरित होने के प्रति।
हमारा अस्तित्व शनैः शनैः क्षीण होता रहा तथा समानान्तर कौमी उन्माद का दानव तेजी से अपने पांव पसारता रहा। हम अफगानिस्तान से सिमटते सिमटते नित्य अपना दायरा कम करते रहे एक तरह से आत्म हत्या करते रहे । फिर कौमी उन्मादी दानव ने कश्मीर से हमें नेस्तनाबूद कर हमारे दायरे को और छोटा कर दिया। हमारे छुद्र स्वार्थ में लिपटे शासक बीते कयी दसकों से अपने ऐश्वर्य द्वारा हमें आकर्षित करते रहे, समाज में छल कपट का बीज बोते रहे, हमें संवेदनहीन बनाते रहे। ऐसा नहीं था कि हमने संघर्ष नहीं किया संघर्ष तो निरन्तर चलता रहा मगर हारने वाले को इतिहास दूर झिटक देता है। शक्ति ऐसे शासकों के पास थी जिन्हें अस्तित्व की नहीं अपने विलास की चिन्ता थी।
आखिर उस गौरवशाली इतिहास ने अंगड़ाई ली जाति पात कौम की दीवारें टूटीं वह नैतिक शक्ति शासन पर काबिज हुयी जो हमारे अस्तित्व की रीढ़ की हड्डी है। हमारा अस्तित्व किसी भी कौम को न तो कमतर मानता है और न ही दुनिया में कभी किसी के अधिकारों का अतिक्रमण ही किया। इतिहास गवाह है हमारे अस्तित्व से दुनिया में किसी को न कभी कोई खतरा था न होगा।
परन्तु विलासी संप्रभुता इतनी आसानी से हार मानने वाली नहीं है। फिर भी हमारा अस्तित्व सहिष्णुता के नाम पर कायरता त्याग चुका है अब । अतः हमारे अस्तित्व के रोगग्रस्त हिस्से अधिक समय तक पीड़ा नहीं दे पायेंगे। यह आत्म हत्या करने वाले हमारे अस्तित्व को जितनी जल्दी समझ आ जाय देश और समाज सब के हित में रहेगा।
इतिहास जीत का ही संवाहक होता है। वह जीत चाहे आपराधिक जोश की हो अथवा अपराध प्रतिकारक जोश की । यदि हमारा अपराध प्रतिकारक जोश शिथिल पड़ा तब आपराधिक जोश इतिहास पर काबिज हो जायेगा। और हमारा अस्तित्व किंवदंती भी बन सकता है। क्योंकि हमारा अस्तित्व निरन्तर आत्म हत्या के पथ पर अग्रसर है। अपने अपराध प्रतिकारक जोश को बरकरार रखना ही हमारे अस्तित्व की भविष्य यात्रा की गारन्टी होगी।।