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Home राज्य

असम

Janlok india times news bureau by Janlok india times news bureau
January 2, 2020
in राज्य
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संपर्क भाषा भारती को असम से प्रतिनिधियों की आवश्यकता है…

असम या आसाम उत्तर पूर्वी भारत में एक राज्य है। असम अन्य उत्तर पूर्वी भारतीय राज्यों से घिरा हुआ है। असम भारत का एक सीमांत राज्य है जो चतुर्दिक, सुरम्य पर्वतश्रेणियों से घिरा है। यह भारत की पूर्वोत्तर सीमा 24° 1′ उ॰अ॰-27° 55′ उ॰अ॰ तथा 89° 44′ पू॰दे॰-96° 2′ पू॰दे॰) पर स्थित है। संपूर्ण राज्य का क्षेत्रफल 78,466 वर्ग कि॰मी॰ है। भारत – भूटान तथा भारत – बांग्लादेश सीमा कुछ भागो में असम से जुडी है। इस राज्य के उत्तर में अरुणाचल प्रदेश, पूर्व में नागालैंड तथा मणिपुर, दक्षिण में मिजोरम तथा मेघालय एवं पश्चिम में बंग्लादेश स्थित है।
नाम की उत्पत्ति

विशेषज्ञों के अनुसार ‘आसाम’ नाम काफी परवर्ती है। पहले इस राज्य को ‘असम’ कहा जाता था।

सामान्य रूप से माना जाता है कि असम नाम संस्कृत से लिया गया है जिसका शाब्दिक अर्थ है, वो भूमि जो समतल नहीं है। कुछ लोगों की मान्यता है कि “आसाम” संस्कृत के शब्द “अस्म ” अथवा “असमा”, जिसका अर्थ असमान है का अपभ्रंश है। कुछ विद्वानों का मानना है कि ‘असम’ शब्‍द संस्‍कृत के ‘असोमा’ शब्‍द से बना है, जिसका अर्थ है अनुपम अथवा अद्वितीय। आस्ट्रिक, मंगोलियन, द्रविड़ और आर्य जैसी विभिन्‍न जातियां प्राचीन काल से इस प्रदेश की पहाड़ियों और घाटियों में समय-समय पर आकर बसीं और यहाँ की मिश्रित संस्‍कृति में अपना योगदान दिया। इस तरह असम में संस्‍कृति और सभ्‍यता की समृ‍द्ध परंपरा रही है।

कुछ लोग इस नाम की व्युत्पत्ति ‘अहोम’ (सीमावर्ती बर्मा की एक शासक जनजाति) से भी बताते हैं।

आसाम राज्य में पहले मणिपुर को छोड़कर बंगलादेश के पूर्व में स्थित भारत का संपूर्ण क्षेत्र सम्मिलित था तथा उक्त नाम विषम भौम्याकृति के संदर्भ में अधिक उपयुक्त प्रतीत होता था क्योंकि हिमालय की नवीन मोड़दार उच्च पर्वतश्रेणियों तथा पुराकैब्रियन युग के प्राचीन भूखंडों सहित नदी (ब्रह्मपुत्) निर्मित समतल उपजाऊ मैदान तक इसमें आते थे। परन्तु विभिन्न क्षेत्रों की अपनी संस्कृति आदि पर आधारित अलग अस्तित्व की माँगों के परिणामस्वरूप वर्तमान आसाम राज्य का लगभग 72 प्रतिशत क्षेत्र ब्रहपुत्र की घाटी (असम की घाटी) तक सीमित रह गया है जो पहले लगभग 40 प्रतिशत मात्र ही था।

इतिहास
मुख्य लेख: असम का इतिहास
प्राचीन भारतीय ग्रंथों में इस स्थान को प्रागज्योतिच्ह के नाम से जाना जाता था। महाभारत के अनुसार कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध ने यहाँ की उषा नाम की युवती पर मोहित होकर उसका अपहरण कर लिया था। श्रीमद् भागवत महापुराणके अनुसार उषाने अपनी सखी चित्रलेखाद्वारा अनिरुद्धको अपहरण करवाया | यह बात यहाँ की दन्तकथाओं में भी पाया जाता है कि अनिरुद्ध पर मोहित होकर उषा ने ही उसका अपहरण कर लिया था। इस घटना को यहाँ कुमार हरण के नाम से जाना जाता है।

प्राचीन आसाम
प्राचीन असम, कमरुप के रूप में जाना जाता है, यह शक्तिशाली राजवंशों का शासन था: वर्मन (350-650 ई॰) शाल्स्ताम्भस (655-900 ई॰) और कामरुप पाल (900-1100 ई॰). पुश्य वर्मन ने वर्मन राजवंश कि स्थापना की थी। भासकर वर्मन (600-650 ई॰), जो कि प्रसिद्ध वर्मन शासक थे, के शासनकाल में चीनी यात्री क्षुअन झांग क्षेत्र का दौरा किया और अपनी यात्रा दर्ज की।

बाद में, कमजोर और विघटन (कामरुप पाल) के बाद, कामरुप परंपरा कुछ हद तक बढ़ा दी गई चंद्र (1120-1185 ई॰) मैं और चंद्र द्वितीय (1155-1255 ई॰) राजवंशों द्वारा 1255 ई॰।

मध्यकालीन असम
मध्यकाल में सन् 1228 में बर्मा के एक ताई विजेता चाउ लुंग सिउ का फा ने पुर्वी असम पर अधिकार कर लिया। वह अहोम वंश का था जिसने अहोम वंश की सत्ता यहाँ कायम की। अहोम वंश का शासन 1829 पर्यन्त तब तक बना रहा जब तक कि अंग्रेजों ने यनदबु ट्रीटी के दौरान असम का शासन हासिल किया ।

भूगोल
भू आकृति के अनुसार असम राज्य [2]को तीन विभागों में विभक्त किया जा सकता है :

  1. उत्तरी मैदान अथवा ब्रह्मपुत्र का मैदान जो कि संपूर्ण उत्तरी भाग में फैला हुआ है। इसकी ढाल बहुत ही कम है जिसके कारण प्राय: यह ब्रद्मपुत्र की बाढ़ से आक्रांत रहता है। यह नदी इस समतल मैदान को दो असमान भागों में विभक्त करती है जिसमें उत्तरी भाग हिमालय से आनेवाली लगभग समानांतर नदियों, सुवंसिरी आदि, से काफी कट फट गया है। दक्षिणी भाग अपेक्षाकृत कम चौड़ा है। गौहाटी के समीप ब्रद्मपुत्र मेघालय चट्टानों का क्रम नदी के उत्तरी कगार पर भी दिखाई पड़ता है। बूढ़ी दिहिंग, धनसिरी तथा कपिली ने अपने निकासवर्ती अपरदन की प्रक्रिया द्वारा मिकिर तथा रेग्मा पहाड़ियों को मेघालय की पहाड़ियों से लगभग अलग कर दिया है। संपूर्ण घाटी पूर्व में 30 मी॰ से पश्चिम में 130 मी॰ की ऊँचाई तक स्थित है जिसकी औसत ढाल 12 से॰मी॰ प्रति कि॰ मी॰ है। नदियों का मार्ग प्राय: सर्पिल है।
    2. मिकिर तथा उत्तरी कछार का पहाड़ी क्षेत्र भौम्याकृति की दृष्टि से एक जटिल तथा कटा फटा प्रदेश है और आसाम घाटी के दक्षिण में स्थित है। इसका उत्तरी छोर अपेक्षाकृत अधिक ढलवा है।
    3. कछार का मैदान अथवा सूरमा घाटी जलोढ़ अवसाद द्वारा निर्मित एक समतल उपजाऊ मैदान है जो राज्य के दक्षिणी भाग में स्थित है। वास्तव में इसे बंगाल डेल्टा का पूर्वी छोर ही कहा जा सकता है। उत्तर में डौकी भ्रंश इसकी सीमा बनाता है।
    नदियाँ
    इस राज्य की प्रमुख नदी ब्रह्मपुत्र (तिब्बत की सांगपी) है जो लगभग पूर्व पश्चिम में प्रवाहित होती हुई धुबरी के निकट बंगलादेश में प्रविष्ट हो जाती है। प्रवाहक्षेत्र के कम ढलवां होने के कारण नदी शाखाओं में विभक्त हो जाती है तथा नदीस्थित द्वीपों का निर्माण करती है जिनमें माजुली (929 वर्ग कि॰मी॰) विश्व का सबसे बड़ा नदी स्थित द्वीप है। वर्षाकाल में नदी का जलमार्ग कहीं कहीं 8 कि॰मी॰ चौड़ा हो जाता है तथा झील जैसा प्रतीत होता है। इस नदी की 35 प्रमुख सहायक नदियां हैं। सुवंसिरी, भरेली, धनसिरी, पगलडिया, मानस तथा संकाश आदि दाहिनी ओर से तथा लोहित, नवदिहिंग, बूढ़ी दिहिंग, दिसांग, कपिली, दिगारू आदि बाई ओर से मिलने वाली प्रमुख नदियां हैं। ये नदियां इतना जल तथा मलबा अपने साथ लाती है कि मुख्य नदी गोवालपारा के समीप 50 लाख क्यूसेक जल का निस्सारण करती है। ब्रह्मपुत्र की ही भाँति सुवंसिरी आदि भी मुख्य हिमालय (हिमाद्रि) के उत्तर से आती है तथा पूर्वगामी प्रवाह का उदाहरण प्रस्तुत करती है। पर्वतीय क्षेत्र में इनके मार्ग में खड्ड तथा प्रपात भी पाए जाते हैं। दक्षिण में सूरमा ही उल्लेख्य नदी है जो अपनी सहायक नदियों के साथ कछार जनपद में प्रवाहित होती है।

भौमिकीय दृष्टि से आसाम राज्य में अति प्राचीन दलाश्म (नीस) तथा सुभाजा (शिस्ट) निर्मित मध्यवर्ती भूभाग (मिकिर तथा उत्तरी कछार) से लेकर तृतीय युग की जलोढ़ चट्टानें भी भूतल पर विद्यमान हैं। प्राचीन चट्टानों की पर्त उत्तर की ओर क्रमश: पतली होती गई है तथा तृतीयक चट्टानों से ढकी हुई हैं। ये चट्टानें प्राय: हिमालय की तरह के भंजों से रहित हैं। उत्तर में ये क्षैतिज हैं पर दक्षिण में इनका झुकाव (डिप) दक्षिण की ओर हो गया है।

भूकंप तथा बाढ़ आसाम की दो प्रमुख समस्याएं हैं। बाढ़ से प्राय: प्रतिवर्ष 8 से 10 करोड़ रुपए की माल की क्षति होती है। 1966 की बाढ़ से लगभग 16,000 वर्ग कि॰मी॰ क्षेत्र जलप्लावित हुआ था। स्थल खंड के अपेक्षाकृत नवीन होने तथा चट्टानी स्तरों के अस्थायित्व के कारण इस राज्य में भूकंप की संभावना अधिक रहती है। 1897 का भूकंप, जिसकी नाभि गारो खासी की पहाड़ियों में थी, यहाँ का सबसे बड़ा भूकंप माना जाता है। रेल लाइनों का उखड़ना, भूस्खलन, नदी मार्गावरोध तथा परिवर्तन आदि क्रियाएँ बड़े पैमाने पर हुई थीं और लगभग 10,550 व्यक्ति मर गए थे। अन्य प्रमुख भूकंपक्रमश: 1869, 1888, 1930, 1934 तथा 1950 में आए।

जलवायु
सामान्यतः आसाम राज्य की जलवायु, भारत के अन्य भागों की भांति, मानसूनी है पर कुछ स्थानीय विशेषताएं इसमें विश्लेषणोपरांत अवश्य दृष्टिगोचर होती हैं। प्राय: पाँच कारक इसे प्रभावित करते हैं :

  1. उच्चावच;
    2. पश्चिमोत्तर भारत तथा बंगाल की खाड़ी पर सामयिक परिवर्तनशील दबाव की पेटियां, तथा उनका उत्तरी एवं पूर्वोत्तरीय सामयिक दोलन;
    3. उष्णकटिबंधीय समुद्री हवाएं;
    4. सामयिक पश्चिमी चक्रवातीय हवाएं तथा
    5. पर्वत एवं घाटी की स्थानीय हवाएं।
    गंगा के मैदान की भांति यहाँ ग्रीष्म की भीषणता का अनुभव नहीं होता क्योंकि प्राय: बूंदाबांदी तथा वर्षा हो जाया करती है। कोहरा, बिजली की चमक दमक तथा धूल के तूफान प्राय: आते रहते हैं। वर्ष में 60-70 दिन कोहरा तथा 80-115 दिन बिजली की कड़वाहट अनुभव की जाती है। औसत वार्षिक वर्षा 200 सें॰मी॰ होती है पर मध्य भाग (गौहाटी, तेजपुर) में यह मात्रा 100 से॰मी॰ से भी कम होती है जबकि पूर्व एवं पश्चिम में कहीं कहीं 1,000 से॰मी॰ तक भी वर्षा होती है। सापेक्ष आर्द्रता वर्ष भर अधिक रहती है (90 प्रतिशत)। जाड़े का औसत तापमान 12.8° सें॰ग्रे॰ तथा ग्रीष्म का औसत तापमान 23° सें॰ग्रे॰ रहता है। अधिकतम तापमान वर्षा ऋतु के अगस्त महीने में रहता है (27.17° सें॰ग्रे॰)।

भूमि
काँप तथा लैटराट इस राज्य की प्रमुख मिट्टियां हैं जो क्रमश: मैदानी भागों तथा पहाड़ी क्षेत्रों के ढालों पर पाई जाती हैं। नई काँप मिट्टी नदियों के बाढ़ क्षेत्र में पाई जाती है तथा धान, जूट, दाल एवं तिलहन के लिए उपयुक्त है। यह प्राय: उदासीन प्रकृति की होती है। बाढ़ेतर प्रदेश की वागर मिट्टी प्राय: अम्लीय होती है। यह गन्ना, फल, धान के लिए अधिक उपुयक्त है। पर्वतीय क्षेत्र की लैटराइट मिट्टी अपेक्षाकृत अनुपजाऊ होती है। चाय की कृषि के अतिरिक्त ये क्षेत्र प्राय: वनाच्छादित हैं।

खनिज
तृतीय युग का कोयला तथा खनिज तेल इस प्रदेश की मुख्य संपदाएं हैं। खनिज तेल का अनुमानित भंडार 450 लाख टन है जो पूरे भारत का लगभग 50 प्रतिशत है तथा प्रमुखतः बह्मपुत्र की ऊपरी घाटी में दिगबोई, नहरकटिया, मोशन, लक्वा, टियोक आदि के चतुर्दिक्‌ प्राप्य है। राज्य के दक्षिणपूर्वी छोर पर लकड़ी लेड़ी नजीरा के निकट कोयले का भांडार है। अनुमानित भांडार 33 करोड़ टन है। उत्पादन क्रमश: कम होता जा रहा है। (1963 से 5,77,000 टन; 1965 में 5,41,000 टन)। फायर क्ले, गृह-निर्माण-योग्य पत्थर आदि अन्य खनिज हैं।

कृषि
असम एक कृषिप्रधान राज्य है। 1970-71 में कुल (मिजोरमयुक्त) लगभग 25,50,000 हेक्टेयर भूमि (कुल क्षेत्रफल का लगभग 1/3) कृषिकार्य कुल भूमि का 90 प्रतिशत मैदानी भाग में है। धान (1971) कुल भूमि (कृषियोग्य) के 72 प्रतिशत क्षेत्र में पैदा किया जाता है (20,00,000 हेक्टेयर) तथा उत्पादन 20,16,000 टन होता है। अन्य फसलें (क्षेत्रपफल 1,000 हेक्टेयर में) इस प्रकार हैं- गेहूँ 21; दालें 79; सरसों तथा अन्य तिलहन 139। कुल कृषिभूमि का 77 प्रतिशत खाद्य फसलों के उत्पादन में लगा है। इतना होते हुए भी प्रति व्यक्ति कृषिभूमि का औसत 0.5 एकड़ (0.2 हेक्टेयर) ही है। विभिन्न साधनों द्वारा भूमि को सुधारने के उपरांत कृषि क्षेत्र को पाँच प्रतिशत बढ़ाया जा सकता है।

अन्य उत्पादन
चाय, जूट तथा गन्ना यहाँ की प्रमुख औद्योगिक तथा धनद फसलें हैं। चाय की कृषि के अंतर्गत लगभग 65 प्रतिशत कृषिगत भूमि सम्मिलित है। आसाम के आर्थिक तंत्र में इसका विशेष हाथ है। भारत की छोटी बड़ी 7,100 चाय बागान में से लगभग 700 असम में ही स्थित हैं। 1970 ई॰ में कुल 2,00,000 हेक्टेयर क्षेत्र में चाय के बाग थे जिनसे लगभग 21.5 करोड़ कि॰ग्रा॰ (1970) चाय तैयार की गई। इस उद्योग में प्रतिदिन 3,79,781 मजदूर लगे हैं, जिनमें अधिकांश उत्तर बिहार तथा पूर्वोत्तर उत्तर प्रदेश के हैं। जूट लगभग छह प्रतिशत कृषियोग्य भूमि में उगाई जाती है। आर्थिक दृष्टिकोण से यह अधिक महत्वपूर्ण है। आसाम घाटी के पूर्वी भाग तथा दरंग जनपद इसके प्रमुख क्षेत्र हैं। 1970 ई॰ में यहाँ की नदियों में से 26.5 हजार टन मछलियाँ भी पकड़ी गईं।

सिंचाई
वर्षा की अधिकता के कारण सिंचाई की व्यवस्था व्यापक रूप से लागू नहीं की जा सकी, केवल छोटी-छोटी योजनाएं ही क्रियान्वित की गई हैं। कुल कृषिगत भूमि का मात्र 22 प्रतिशत ही सिंचित है। 1964 में प्रारंभ की गई जमुना सिंचाई योजना (दीफू के निकट) इस राज्य की सबसे बड़ी योजना है जिससे लगभग 26,000 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जाने का अनुमान है। नहरों की कुल लंबाई 137.15 कि॰मी॰ रहेगी।

विद्युत्
राज्य के प्रमुख शक्ति-उत्पादक-केंद्र (क्षमता तथा स्वरूप के साथ) ये हैं – गुवाहाटी (तापविद्युत्‌) 32,500 किलोवाट, नामरूप (तापविद्युत्‌) लखीमपुर में नहरकटिया से 20 कि॰मी॰, 23,000 किलोवाट का प्रथम चरण 1965 में पूर्ण। 30,000 किलोवाट का दूसरा चरण 1972-73 तक पूर्ण। जलविद्युत्‌ केंद्रों में यूनिकेम प्रमुख है (पूरी क्षमता 72,000 किलोवाट)।

उद्योग
आसाम के आर्थिक तंत्र में उद्योग धंधों में, विशेष रूप से कृषि पर आधारित, तथा खनिज तेल का महत्वपूर्ण योगदान है। गुवाहाटी तथा डिब्रूगढ़ दो स्थान इसके मुख्य केंद्र हैं। कछार का सिलचर नगर तीसरा प्रमुख औद्योगिक केंद्र है। चाय उद्योग के अतिरक्ति वस्त्रोद्योग (शीलघाट, जूट तथा जारीरोड सिल्क) भी यहाँ उन्नत है। हाल ही में एक कपड़ा मिल गौहाटी में स्थापित की गई है। एरी, मूगा तथा पाट आसाम के उत्कृष्ट वस्त्रों में हैं। तेलशोधक कारखाने दिगबोई (पाँच लाख टन प्रति वर्ष) तथा नूनमाटी (7.5 लाख टन प्रति वर्ष) में है। उर्वरक केंद्र नामरूप में हैं जहाँ प्रतिवर्ष 2,75,000 टन यूरिया तथा 7,05,000 टन अमोनिया का उत्पादन किया जाता है। चीरा में सीमेंट का कारखाना है जहाँ प्रतिवर्ष 54,000 टन सीमेंट का उत्पादन होता है। इनके अतिरिक्त वनों पर आधारित अनेक उद्योग धंधे प्राय: सभी नगरों में चल रहे हैं। धुबरी की हार्डबोर्ड फैक्टरी तथा गुवाहाटी का खैर तथा आगर तैल विशेष उल्लेखनीय हैं।

यातायात
आवागमन तथा यातायात के साधनों के सुव्यवस्थित विकास में इस प्रदेश के उच्चावचन तथा नदियों का विशेष महत्व है। आसाम घाटी उत्तरी दक्षिणी भाग को स्वतंत्र भारत में एक दूसरे से जोड़ दिया गया है। गौहाटी के निकट यह संपूर्ण ब्रह्मपुत्र घाटी का एक मात्र सेतु है। 1966 में रेलमार्गों की कुल लंबाई 5,827 कि॰मी॰ थी (3,334 कि॰मी॰ साइडिंग के साथ)। धुबरी, गौहाटी, लामडि, सिलचर आदि रेलमार्ग द्वारा मिले हुए हैं। राजमार्ग कुल 20,678 कि॰ मी॰ है जिसमें राष्ट्रीय मार्ग 2,934 कि॰मी॰ (19688) है। यहाँ जलमार्गों का विशेष महत्व है और ये अति प्राचीन काल से ही महत्वपूर्ण रहे हैं। नौकावहन-योग्य नदियों की लंबाई 3,261 कि॰ मी॰ है जिसमें 1653 कि॰मी॰ मार्ग स्टीमर चलने योग्य है तथा वर्ष भर उपयोग में लाए जा सकते हैं। शेष मात्र मानसून के दिनों में ही काम लायक रहते हैं।

शिक्षा
असम में छह से बारह वर्ष की उम्र तक के बच्चों के लिए माध्यमिक स्तर तक अनिवार्य तथा नि:शुल्क शिक्षा की व्यवस्था है। गुवाहाटी, जोरहाट, तेजपुर, सिलचर एवं डिब्रूगढ़ में विश्वविद्यालय हैं। राज्य के 80 से भी ज़्यादा केंद्रों से लोक कल्याण की विभिन्न योजनाओं का संचालन हो रहा है। जो महिलाओं एवं बच्चों के लिए मनोरंजन तथा अन्य सांस्कृतिक सुविधाओं की व्यवस्था करती हैं।

विश्वविद्यालय स्थान स्थापित श्रेणी शिक्षा
डिब्रूगढ़ विश्वविद्यालय डिब्रूगढ़ 1965 राज्य सरकार विभिन्न
गुवाहाटी विश्वविद्यालय गुवाहाटी 1948 राज्य सरकार विभिन्न
कॉटन विश्वविद्यालय गुवाहाटी 1901 राज्य सरकार विभिन्न
कृष्णकांत हैंडीकी स्टेट ओपन यूनिवर्सिटी गुवाहाटी 2007 राज्य सरकार दूरस्थ शिक्षा
शंकरदेव आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय गुवाहाटी 2010 राज्य सरकार स्वास्थ्य विज्ञान
असम कृषि विश्वविद्यालय जोरहाट 1968 राज्य सरकार कृषि
काजीरंगा विश्वविद्यालय जोरहाट 2012 निजी विभिन्न
असम डाउन टाउन विश्वविद्यालय गुवाहाटी 2010 निजी विभिन्न
असम डॉन बोस्को विश्वविद्यालय गुवाहाटी 2009 निजी विभिन्न
असम विश्वविद्यालय सिलचर 1994 केंद्रीय विभिन्न
तेजपुर विश्वविद्यालय तेजपुर 1994 केंद्रीय विभिन्न

इंजीनियरिंग कॉलेज-

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, गुवाहाटी
जोरहाट इंजीनियरिंग कॉलेज – जोरहाट
असम इंजीनियरिंग कॉलेज – जालुकबारी, गुवाहाटी
राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, सिलचर (एन आई टी) – सिलचर
मेडिकल कॉलेज-

जोरहाट मेडिकल कॉलेज – जोरहाट
असम मेडिकल कॉलेज – डिब्रुगढ़
गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज – गुवाहाटी
सिलचर मेडिकल कॉलेज – सिलचर
तेजपुर मेडिकल कॉलेज – तेजपुर (निर्माणाधीन)
बरपेटा मेडिकल कॉलेज – बरपेटा (निर्माणाधीन)
आयुर्वेदिक कॉलेज- गुवाहाटी
भाषा

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असम की भाषायें 2001 की जनगणना के अनुसार[3][4]
██ असमिया (48.8%)
██ बोडो (4.8%)
██ नेपाली (2.12%)
██ हिंदी (5.88%)
██ अन्य (11.8%)
मुख्य लेख: असमिया भाषा
असमिया और बोडो प्रमुख क्षेत्रीय और आधिकारिक भाषाएं हैं। बंगाली बराक घाटी के तीन जिलों में आधिकारिक दर्जा रखती है और राज्य की दूसरी सबसे व्यापक रूप से बोली जाने वाली भाषा (33.91%) है। असमिया प्राचीन कामरूप और मध्ययुगीन राज्यों जैसे कामतापुर कछारी, सुतीया, बोरही, अहोम और कोच राज्यों में लोगों कि आम भाषा रही है। 7वीं–8वीं ई. में लिखी गई लुइपा, सरहपा जैसे कवियों के कविताओं में असमिया भाषा के निशान पाए जाते हैं। कामरूपी, ग्वालपरिया जैसे आधुनिक बोलियाँ इसकी अपभ्रंश हैं। असमिया भाषा को नगालैंड, अरुणाचल प्रदेश और पूर्वोत्तर में स्थानीकृत करके इस्तेमाल किया जाता रहा है। असमिया उच्चारण और कोमलता की अपनी अनूठी विशेषताओं के साथ अपने संकर प्रकृति की वजह से एक समृद्ध भाषा है। असमिया साहित्य सबसे अमीर साहित्यों में से एक है।

धर्म
असम में धर्म[5]
धर्म प्रतिशत
हिंदू

64.90%
मुसलमान

30.90%
ईसाई

3.70%
अन्य

0.50%
2001 की जनगणना के अनुसार, यहाँ हिंदुओं की संख्या 1,72,96,455, मुसलमानों की 82,40,611, ईसाई की 9,86,589 और सिखों की 22,519, बौद्धों की 51,029, जैनियों की 23,957 और 22,999 अन्य धार्मिक समुदायों से संबंधित थे।

अर्थव्यवस्था
असम से भारत का सर्वाधिक खनिज तेल प्राप्त होता है। यहाँ लगभग 1000 किलोमीटर लम्बी पेटी में खनिज तेल पाया जाता है। यह पेटी इस राज्य की उत्तरी-पूर्वी सीमा से आरम्भ होकर खासी तथा जयन्तिया पहाड़ियों से होती हुई कछार जिले तक फैली है। यहाँ के मुख्य तेल क्षेत्र तिनसुकिया, डिब्रुगड़ तथा शिवसागर जिलों में पाया जाते हैं।

पारंपरिक शिल्प
असम में शिल्प की एक समृद्ध परम्परा रही है, वर्तमान केन और बाँस शिल्प, घंटी धातु और पीतल शिल्प रेशम और कपास बुनाई, खिलौने और मुखौटा बनाने, मिट्टी के बर्तनों और मिट्टी काम, काष्ठ शिल्प, गहने बनाने, संगीत बनाने के उपकरणों, आदि के रूप में बना रहा प्रमुख परंपराओं [56] ऐतिहासिक, असम भी लोहे से नावों, पारंपरिक बंदूकें और बारूद, हाथीदांत शिल्प, रंग और पेंट, लाख, agarwood उत्पादों की लेख, पारंपरिक निर्माण सामग्री, उपयोगिताओं बनाने में उत्कृष्ट आदि केन और बाँस शिल्प के दैनिक जीवन में सबसे अधिक इस्तेमाल किया उपयोगिताओं, घरेलू सामान से लेकर, उपसाधन बुनाई, मछली पकड़ने का सामान, फर्नीचर, संगीत वाद्ययंत्र, निर्माण सामग्री, आदि उपयोगिताएँ और Sorai और Bota जैसे प्रतीकात्मक लेख घंटी धातु और पीतल से बने प्रदान हर असमिया घर में पाया [57] [58] हाजो और Sarthebari पारंपरिक घंटी धातु और पीतल के शिल्प का सबसे महत्वपूर्ण केन्द्रों में कर रहे हैं। असम रेशम के कई प्रकार के घर है, सबसे प्रतिष्ठित हैं: मूगा – प्राकृतिक सुनहरे रेशम, पैट – एक मलाईदार उज्ज्वल चांदी के रंग का रेशम और इरी – एक सर्दियों के लिए गर्म कपड़े के विनिर्माण के लिए इस्तेमाल किया किस्म। सुआल्कुची (Sualkuch), पारंपरिक रेशम उद्योग के लिए केंद्र के अलावा, ब्रह्मपुत्र घाटी के लगभग हर हिस्से में ग्रामीण परिवार उत्कृष्ट कढ़ाई डिजाइन के साथ रेशम और रेशम के वस्त्र उत्पादन करते हैं। इसके अलावा, असम में विभिन्न सांस्कृतिक समूह अद्वितीय कढ़ाई डिजाइन और अद्भुत रंग संयोजन के साथ सूती वस्त्रों के विभिन्न प्रकार बनाते हैं।

इसके अलावा असम में खिलौना और मुखौटा आदि बनाने का एवं ज्यादातर वैष्णव मठों में मिट्टी के बर्तनों और निचले असम जिलों में काष्ठ शिल्प, लौह शिल्प, गहने, मिट्टी के काम आदि का अद्वितीय शिल्प लोगों के पास है।

ललित कला
पुरातन मौर्य गोलपाड़ा जिले में और उसके आस-पास की खोज स्तूप प्राचीन कला और वास्तु काम करता है (सी॰ 300 सी॰ 100 ई॰ के लिए ई॰पू॰) के जल्द से जल्द उदाहरण हैं। तेजपुर में एक सुंदर चौखट प्राचीन असम में देर गुप्ता अवधि के कला के सारनाथ स्कूल के प्रभाव के साथ कला का काम करता है सबसे अच्छा उदाहरण के रूप में पहचान कर रहे हैं के साथ Daparvatiya (Doporboteeya) पुरातात्विक स्थल की खोज की बनी हुई है। कई अन्य साइटों को भी स्थानीय रूपांकनों और दक्षिण पूर्व एशिया में उन लोगों के साथ समानता के साथ कभी कभी के साथ स्थानीय कला रूपों के विकास दिखा रहे हैं। वर्तमान से अधिक की खोज कई मूर्तिकला और वास्तुकला के साथ रहता चालीस प्राचीन पुरातात्विक असम भर में साइटों। इसके अलावा, वहाँ कई देर मध्य आयु कला और कई शेष मंदिरों, महलों और अन्य इमारतों के साथ मूर्तियां और रूपांकनों के सैकड़ों सहित वास्तु काम करता है के उदाहरण हैं।

चित्रकारी असम के एक प्राचीन परंपरा है। Xuanzang (7 वीं शताब्दी ई.) का उल्लेख है कि हर्षवर्धन के लिए कामरुपा राजा भासकर वर्मन उपहार के बीच चित्रों और चित्रित वस्तुओं, असमिया रेशम पर थे जिनमें से कुछ थे। Hastividyarnava (हाथी पर एक ग्रंथ), चित्रा भागवत और गीता गोविंदा से मध्य युग में जैसे पांडुलिपियों के कई पारंपरिक चित्रों के उत्कृष्ट उदाहरण सहन. मध्ययुगीन असमिया साहित्य भी chitrakars और patuas करने के लिए संदर्भित करता है।

आसाम की जातियाँ
आसाम की आदिम जातियाँ संभवत: आर्य तथा मंगोलीय जत्थे के विभिन्न अंश हैं। यहाँ के जातियों को कई समूहों में विभाजित की जा सकती है। प्रथम ब्राह्मण, कलिता (कायस्थ), नाथ (योगी) इत्यादि हैं जो आदिकाल में उत्तर भारत से आए हुए निवासियों के अवशेष मात्र हैं। दूसरे समूह के अंतर्गत आर्य-मंगोलीय एवं मंगोलीय जनसमस्ति जैसे के आहोम, सुतिया, मरान, मटक, दिमासा (अथवा पहाड़ी कछारी), बोडो (या मैदानी कछारी), राभा, तिवा, कार्बी, मिसिंग,ताई,ताई फाके तथा कुकी जातियां हैं। इन मे से बहुत सारे जातियां असम के ऊपरी जिलों (उजनि) में रहते हैं और अन्य जातियां आसाम के निचले भागों (नामोनि) में रहते हैं। नामोनि के कोच जाती असम के एक प्रमुख जाती है जो गोवालपारा, धुबूरी इत्यादि राज्यों में ये राजवंशी के नाम से प्रसिद्ध हैं। कोइवर्त्त यहाँ की मछली मारने वाली जाति है । आधुनिक युग में यहाँ पर चाय के बाग में काम करनेवाले बंगाल, बिहार, उड़ीसा तथा अन्य प्रांतों से आए हुए जातियां और आदिवासियां भी असमिया मूलस्रोत के अंश बन गए हैं । इन सब जातियां समन्वित हो कर असमिया नाम के अखंड जाती को जन्म दिया है । साथ ही साथ, सभी जातियों के विचित्र परम्पराएं मिलकर भी एक अतुलनीय संस्कृति सृष्ट हुवे जिसका नाम असमिया संस्कृति है जो की पूरे भारत में विरल है ।

जिले

असम के 27 जिले
असम में 33 जिले हैं –

डीमा हासाउ जिला
करीमगंज जिला
कामरूप जिला
कार्बी ऑन्गलॉन्ग जिला
कोकराझार जिला
गोलाघाट जिला
काछाड़ जिला
गोवालपारा जिला
जोरहाट जिला
डिब्रूगड़ जिला
तिनसुकिया जिला
दरंग जिला
धुबरी जिला
धेमाजी जिला
नलबाड़ी जिला
नगांव जिला
बरपेटा जिला
बंगाईगाँव जिला
मरिगांव जिला
लखिमपुर जिला
शिवसागर जिला
शोणितपुर जिला
हाईलाकांडी जिला
बक़सा जिला
उदालगुड़ी जिला
चिरांग जिला
असम की समस्याएँ
वर्तमान असम बाढ़, गरीबी, पिछड़ेपन तथा विदेशी घुसपैठ (मुख्यतः बांग्लादेशी) का शिकारग्रस्त है।

प्रसिद्ध व्यक्ति
शंकरदेव – भक्ति आंदोलन के समय के असमिया भाषा के अत्यंत प्रसिद्ध कवि, नाटककार तथा वैष्णव समाजसुधारक
लोकप्रिय गोपीनाथ बोरदोलोई – असम के प्रथम मुख्यमंत्री
कृष्णकांत संदिकोइ – संस्कृत भाषा और साहित्य के प्रसिद्ध लेखक-विद्वान, गुवाहाटी विश्वविद्यालय के प्रथम कुलपति
ज्योतिप्रसाद आगरवाला – असम के प्रथम फिल्म निर्माता, कवि, गीतकार और नाटककार
बिष्नु प्रसाद राभा – कवि, चित्रकार, क्रांतिकारी, “सैनिक कलाकार” और “कलागुरु” नामों से विभूषित
भूपेन हाजोरिका – पद्मभूषण, गायक, संगीतकार, गीतकार, फिल्मकार, कवि, समाजसेवी, दादासाहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित, bharat ratna se sammanit
वीरेंद्र कुमार भट्टाचार्य – ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित प्रथम असमिया लेखक
मामोनी रायसम गोस्वामी/ इंदिरा गोस्वामी – ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित लेखिका, दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व अध्यापक

 

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