“हुजूर ,आरिजो रुख्सार क्या तमाम बदन
मेरी सुनो तो मुजस्सिम गुलाब हो जाए ,
गलत कहूँ तो मेरी आकबत बिगड़ती है
जो सच कहूँ तो खुदी बेनकाब हो जाए”
इधर सताए हुए कुछ लोगों के जख्मों पर फाहे क्या रखे गए उधर धर्म को अफीम मानने वाले लोगों ने लोगों को राजधर्म याद दिलाने की कवायद शुरू कर दी।नागरिकता संशोधन बिल संसद में पास हुआ तो देश में बहुतों ने इसे अपने आपने हिसाब से लेना शुरू कर दिया ।वैसे तो इस संशोधन बिल का भारत के नागरिकों से कोई लेना -देना नहीं है ,अलबत्ता कुछ नए लोगों को नागरिकता देने की कवायद है मगर हमारे देश में कौआ कान ले गया की बात यूँ ही नहीं कही जाती है कि किसी ने कहा कौआ कान ले गया तो लोग कौए के पीछे पत्थर लेकर दौड़ पड़ेंगे ना कि पहले एक बार कान की तस्दीक कर लें और कॉमन सेन्स का प्रयोग करें कि कान ना तो तो ले जाए जा सकते हैं और ना ही खोले जा सकते हैं ।कान हमेशा खुले ही रहते हैं और कानों में तेल डालने से सुनायी पड़ना बंद हो जाता है भले ही वो चीखें बरसों से सताए ,बेबसी का जीवन बिता रहे अपने ही बन्धु बांधवों की है ।अब ये तो समय ही बताएगा कि इन चीखों को इनके हामी रहे लोगों के कानों से अंतरात्मा तक पहुंचने के लिये जो तेल इस्तेमाल हुआ है वो टके के मोल खरीदा गया है या रूपिया में ,वैसे सुना है बामियान से जो पिस्ता ,बादाम आता है उसे बहुत वर्षों तक खाते रहने से अंतरात्मा की आवाज़ कुछ मानुषों को सुनायी पड़नी बन्द हो जाती है। बड़ी सुरक्षा के घेरे में पिस्ता-बादाम खाते रहे लोग कहते हैं अवाम से कि सुनो,सुनते रहो, कान खुले रखो ,लेकिन बोलते रहने दो हमें।अवाम ने पूछा -माजरा क्या है ,जवाब मिला -खतरा है ।
अवाम ने पूछा -कैसा खतरा,किससे खतरा ?
जवाब मिला “प्रोटेस्ट करो, बाकी बातें हम बाद में बताएंगे।अवाम का एक हिस्सा जो उनसे प्रभावित है ,प्रोटेस्ट करने निकल पड़ा और कृतज्ञ भी है ।क्या कहने-
“वो बात कितनी भली है जो आप करते हैं,
सुनो तो सीने की धड़कन रवाब हो जाये”
ऐसा नहीं है कि इस सीएबी बिल के पास होने से सिर्फ राजनैतिक लोगों का लेना देना है ,बल्कि उन लोगों का भी काफी लेना देना है जिन्होंने इसकी अपनी अपनी परिभाषाएं गढ़ ली हैं।हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में इसको लेकर तरह तरह की क्यासें लगायी जा रही हैं।करन जौहर जो धर्मा प्रोडूक्शन्स नाम की कंपंनी चलाते हैं लेकिन कभी भी कोई धार्मिक फिल्म नहीं बनायी और वो बेहद डेमोक्रेटिक इंसान माने जाते हैं ,उन्होंने कहा है कि ,कंगना रनौत को फिल्म इंडस्ट्री में नेपोटिज्म वाला बयान वापस लेना होगा ,क्योंकि बपौती की तर्ज पर चलने वाली फिल्म इंडस्ट्री में कंगना घुसपैठिया हैं ,सिर्फ प्रतिभा नहीं ,बाप दादा का यहां का होना भी एक जरूरी शर्त है।आलिया भट्ट की ख़ुशी का कोई पारावार नहीं है उनका लॉजिक है दीपिका पादुकोण को लेडी सुपरस्टार की कुर्सी खाली करके बंगलौर में बैडमिंटन खेलना चाहिये ,क्योंकि वो भी फिल्मोद्योग में घुसपैठिया मानी जाएँगी।वरुण धवन ने अपनी सभी ना चलने वाली फिल्मों का जिम्म्मेदार आयुष्मान खुराना को माना है और दलील ये भी है कि आयुष्मान जैसे बेहद साधारण घरों के लड़के अभिनय में घुसपैठ ना करते तो कुछ फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड उनको भी मिलते।तुषार कपूर ने कहा है कि अरशद वारसी जैसे लोगों की वजह से वो बरसों से मूक अभिनेता बने हुए हैं ,उन्होंने अपनी पारिवारिक मित्र स्मृति ईरानी से पूछने की योजना बनायी है कि क्या इस बिल में ऐसा कोई प्रावधान है कि वो रोहित शेट्टी को गोलमाल सीरीज में श्रेयस तलपडे को कास्ट करने से रुकवा सकें और खुद उस रोल के लिये अप्लाई करें।हद तो तब हो गयी जब आमिर और सलमान खान ने शाहरुख़ खान को साफ़ कह दिया कि वे फ़िल्मोद्योग में किसी के भाई भतीजे नहीं हैं इसलिये सुपरस्टार की अपनी बादशाहत छोड़ें और दिल्ली के दरियागंज में जाकर अपना कॉफी स्टाल वाला पुराना काम देखें।इधर विश्वसनीय ब्रांड के ब्रांड एम्बेसडर माने जाने वाले अमिताभ बच्चन ने सरकार से अपील की है कि चाहे शरणार्थियों के लिये घर बनाना हो या घुसपैठियों के लिये डिटेंशन सेंटर ,सरिया और सीमेंट उसी ब्रांड का खरीदा जाये जिसका विज्ञापन वो करते हैं।उनके सरिया और सीमेंट भी किसी जाति, या धर्म के नहीं हैं जैसे कि वो खुद दावा करते रहे हैं।
इस नागरिकता बिल ने कुछ लोगों की सोच का नजरिया भी बदल दिया है ।वैसे तो भारत के इतिहास में 2014 का वर्ष कुछ लोगों के लिये विरोध का कट ऑफ डेट बना हुआ है लेकिन बिल में 2014 के कट ऑफ से कुछ लोग बड़े आशान्वित और उत्साहित हैं।राजधानी मेंआंदोलनरत कुछ प्रौढ़ युवाओं ने पूछा है कि जिस होस्टल में वे 2014 से पूर्व रह रहे थे क्या उनको उस कमरे का स्थायी नागरिक मान लिया जाएगा या नहीं ,उन्हें उम्मीद है कि उनको वहां सदा सदा रहने के लिये अनुमति मिल जायेगी। शैक्षिक संस्थानों के कुछ अपेक्षाकृत नए घुसपैठियों ने पूछा है कि कैंपस में जो डिटेंशन सेंटर बनेंगे उनमें एयर कंडीशनर होंगे या नहीं,आइ फोन की चार्जिंग और फ्री वाइ फाई होगा या नहीं और सबसे खास बात उनके डफली प्रोटेस्ट को मीडिया कवरेज मिलेगा या नहीं ,सबसे बड़ी चिंता की बात तो यही है ।इधर साहित्य में भी तमाम लोगों ने ऐसा माना है कि अब हिंदी विभाग में सभी नियुक्तियों पर पहला हक परिवार वालों का होगा ,सीधी और खुली भर्ती से नियुक्त हुए लोगों को कुछ लोग मन ही मन घुसपैठिया मान चुके हैं और हिंदी विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद को जन्म सिद्ध अधिकार ,क्योंकि उनके परिवार के लोग पहले से ही इस विभाग में नियुक्त थे सो असली दावेदार वही हैं,प्रतिभा वगैरह बाद में आती है,
किसी ने उन्हें याद दिलाने की कोशिश की है ,
“अक्ल को तंकीद से फुर्सत नहीं,
इश्क़ पर आमाल की बुनियाद रख”
इस सीएबी बिल के आने से क्रिकेट जगत में भी अजीब अजीब कयासें हैं स्टुअर्ट बिन्नी के हामी सोच रहे हैं कि क्या शिवम दुबे और दीपक चाहर को इस बिल से प्रभावित करके उनको टीम में लाया जा सकता है या नहीं ,रोहन गावस्कर के शुभचिंतकों के मन में टीस होगी कि उनके पिता भारतीय क्रिकेट के चेयरमैन रह चुके हैं तो इस बिल के परिणामों से क्या वो चयनकर्ता क्यों नहीं बन सकते ,रवि शास्त्री ने भी चैन की साँस ली कि अब वो दो हजार अठाइस के वर्ल्ड कप तक जुड़े रह सकते हैं इस बिल की मनमानी व्याख्या करके ,क्योंकि वो सबसे पुरातन हैं।भले ही उनको बनाये रखने के लिये क्रिकेट प्रशंसक जैसा कोई पद सृजित कर दिया जाये वो भी मोटी तनख्वाह पर।
इन सबकी धींगामुशती से आजिज होकर और कैब कैब सुनकर एक प्रौढ़ लड़का जो ढाई हजार पांच सौ रुपये गिनकर बैठा ही था उसने अपनी माँ से हैरानी में पूछा
“मम्मी कैब वालों के लिये बिल आया तो ऑटो वालों को क्यों छोड़ दिया,ये तो बहुत गलत बात है ना “
उनके आस पास खड़े सिपहसालारों ने अपने कानों पर हाथ फिरा कर तस्दीक की है कि उनके कान सलामत हैं या सचमुच कौआ कान ले गया ।?
दिलीप कुमार