“ये दौरे सियासत भी क्या दौरे सियासत है
चुप हूँ तो नदामत है ,बोलूँ तो बगावत है”
आम वोटर चुनाव के वक्त ऐसे ही सोचता है कि वो क्या बोले ,सब कुछ तो बोल दिया है नेताजी ने।नेताजी जवान हैं ,स्टाइलिश कपड़े पहनते हैं ,कभी मीडिया के लाडले हुआ करते थे ,सबको कान के नीचे बजाने की घुड़की दिया करते थे। मगर समय ने ऐसा चक्र ऐसा घुमाया कि आजकल खुद बेचारे कानून की चौखट पर हैं ।कानून से भिड़ना इनका प्रिय शगल हुआ करता था कभी ,खुद कम भिड़ते थे लोगों को भिड़वाते ज्यादा थे लेकिन हवा बदल गयी ।
उन्होंने इस बार आपने लिये जिम्मेदार विपक्ष की भूमिका चुनी है और उस पर तुर्र्रा ये कि ये उनका नया ट्रेंडसेटर आइडिया होगा ,क्या कहने ?
अब कल को देश में यही जिम्मेदार परिपाटी चल जाये तो राजनीति से कड़वाहट खत्म हो जाये ,लोग सिर्फ चुनाव लड़ने के लिए लड़ें ना कि सत्ता हासिल करने के लिये ।पहले से ये तय हो जाये कि फलां तो सत्ता हासिल करने के लिए चुनाव लड़ रहा है जबकि फलां तो सिर्फ सचेत करने और सत्ता पक्ष को उसकी जिम्मेदारी का एहसास दिलाये रखने के लिए विपक्ष में जाना चाहता है । अब ये नये किस्म का सत्याग्रह होगा जिसमें जीवन के तमाम क्षेत्र में रचनात्मक विरोध शुरू कर देंगे ।गोया कोई भी इंटेरनेशनल टूर्नामेंट ना जितवा जाने पर नैतिकता के आधार पर रवि शास्त्री टीम इंडिया के कोच का पद त्याग देंगे क्योंकि सौरभ गांगुली क्रिकेट के सर्वोच्च प्रशासक बन गए हैं। गांगुली के ही आने से महेंद्र सिंह धोनी अब लोगों को टीम से अंदर -बाहर करवाने का खेल विरोध स्वरूप छोड़ देंगे और खुद भी वो मैदान के ही बाहर रिटायर होंगे ,जैसे कि उन्होंने गम्भीर ,सहवाग,युवराज जैसे खिलाडियों को मैदान के बाहर बाहर ही रिटायर करवा दिया ,मैदान पर खेलते हुए रिटायर नहीं होने दिया । रचनात्मक विरोध से ऐसा सदाचार फैलेगा कि बिग बास के घर में लोग साथ में शयन की बाध्यता को त्यागकर धर्म,अध्यात्म पर चर्चा करेंगे । सिंघम सिनेमा के विलेन प्रकाशराज कदाचित किसी दिन दिल्ली की रामलीला में अभिनय करते नजर आएं भले ही रावण का ही ,तब शायद उन्हें डर लगना बन्द हो जाए क्योंकि वो खुद को अल्पसंख्यक बताते हैं और कहते हैं कि पुष्पक विमान टाइप हेलीकॉप्टर से उतरते राम,लक्ष्मण ,सीता के किरदारों को देखकर उनके जैसे माइनॉरिटी डर जाते हैं। किसी ने उन्हें डर लगने पर हनुमान चालीसा पढ़ने की सलाह दी है ,क्योंकि सदियों से भारतवासियों का डर हनुमान चालीसा पढ़ने से दूर होता रहा है ।रचनात्मक विरोध का अगला कदम ये होगा कि रामायण विला में रहने वाली शत्रुघ्न पुत्री सोनाक्षी सिन्हा सबको खामोश बोल कर सुन्दर काण्ड का पाठ करेंगी ।ये मुहिम यहीं नहीं रुकेगी प्रणव मुखर्जी को देश का प्रधानमंत्री बताने वाली आलिया भट्ट टीवी चैंनलों पर बतौर संविधान विशेषज्ञ बुलायीं जाएंगी और लोगों को संविधान के उपबंधों का स्पष्ट करेंगी।ये सदाचार जारी रहेगा रितेश देशमुख एडल्ट कॉमेडी से युवाओं को दूर रहने के लिये जागृत करेंगे और थियटर करके लोगों को फिल्मों में एक्टिंग कैरियर बनाने की गाइडेंस देंगे ।ये कारवां चलता रहेगा जिसमें सनी लियोनी विरोध स्वरूप “बेबी ढोल “के गाने पर डांस करने के बजाय एकादशी के व्रत के बखान बताएंगी।ये रचनात्मक विरोध यूँ रंग लायेगा कि ढिंचक पूजा अब यूट्यूब पर गाने अपलोड करने के बजाय स्टेनोग्राफी का कोर्स करेंगी और लड़कियों को कंप्यूटर पर टाइपिंग स्पीड बढ़ाने का लाइव डेमो देंगी।
रचनात्मक विरोध का ये स्वर्णयुग हिंदी साहित्य में भी दस्तक देगा तब फेमिनिस्ट पुरुषों को पानी पी पीकर कोसने के बजाय स्त्रियों को अपनी कार्यकुशलता और दक्षता बढ़ाने पर गाइडेंस देंगी । जिस तरह से हाल में कुछ लेखिकाओं पर कुछ लोगों ने अश्लील और भद्दे कमेंट किये हैं इसके बजाय खार खाये लेखक पुनः लेखिकाओं को बहन जी ,दीदी जैसे शब्दों से संबोधित करना शुरू कर देंगे ।सदाचार का ये कारवां प्रकाशकों की दहलीज तक पहुंचेगा वो लेखक के खर्चे पर पुस्तक छापने और फिर उसे खरीदने पर बाध्य करने के बजाय उसकी पुस्तक निशुल्क छापेंगे उसे रॉयल्टी देंगे और इष्ट मित्रों में बांटने के लिए पर्याप्त प्रतियां भी देंगे ।तब कोई सिर्फ इस वजह से बड़ा साहित्यकार नहीं माना जाएगा कि वो कितनी किताबें खरीदवा या बिकवा सकता है । नेकी की ये गोलियां वामपंथी साहित्यकार भी खा लेंगे तो बाबर और औरंगज़ेब का बखान बन्द करके मध्यकाल के कुछ अन्य महान नेताओं का जिक्र करेंगे। यही नहीं सावरकर और गोवलकर जैसे लोगों का स्वन्त्रता संग्राम पर क्या योगदान है ,इस पर इतिहास का पुनर्लेखन करेंगे ।ये रचनात्मक विरोध पाकिस्तान तक पहुँचेगा जहाँ की नेशनल असेंबली में महात्मा गांधी की मूर्ति लगायी जायेगी।पाकिस्तान में अब मूतालिया ए पाकिस्तान और टू नेशन थ्योरी के बजाय साझा इतिहास पढ़ाया जायेगा जो 1947 के पहले का होगा जिसमें स्कूलों में लियाकत अली नहीं बल्कि भगत सिंह पढ़ाये जाएंगे ।
नेकी की ये गोलियां शिक्षा संस्थानों तक भी जाएंगे जहां कन्हैया कुमार जैसे लोग देश द्रोह का मुकदमा लेकर नहीं निकलेंगे ,जहां टुकड़े टुकड़े गैंग नहीं बल्कि राष्ट्र सेवा दल जैसी योजनाएं लेकर निकलेंगे इस देश के युवा। मैं ये सब ख्वाब देख ही रहा था कि
“भारत माता की जय “के नारों से मेरी आँख खुल गयी।कुछ बच्चों ने प्रभात फेरी निकाली थी ,,उनका हुजूम देखा तभी किसी ने मुझसे कहा “जय श्री राम “।
मैं सोचने लगा कि ये गोली नेकी वाली कहाँ मिलती है लेकर सबसे पहले मैं खाता और लोगों में बांटता।
उस गोली को याद करके एक शेर याद आया
“ये नूरे खुदायी है या कोई करिश्मा
वल्लाह कोई लूट ना ले मासूमियत तुम्हारी “
ये गोली नेकी वाली कहां मिलती है ,आपको मालूम है क्या ,,,,?
दिलीप कुमार