“ये जमीं तब भी निगल लेने को आमादा थी
पाँव जब जलती हुई शाखों से उतारे हमने
इन मकानों को खबर है ना मकीनों को खबर
उन दिनों की जो गुफाओं में गुजारे हमने “
ये सुनाते हुए उस कश्मीरी विस्थापित के आँसूं निकल पड़े जो अपने घर वापसी के लिये दिल्ली से जम्मू की ट्रेन में बैठ रहा था।मैंने उनसे पूछा-
” कि आप अपना घर पहचान लेंगे,वहाँ तक पहुँच जाएंगे और सबसे ख़ास बात क्या आपका घर ,घर की शक्लोसूरत में होगा भी या नहीं “।
उस बेघर, बेवतन पीड़ित ने एक फोटो दिखाई अपने घर की, फिर निहायत अफसोस स्वर में बोले –
“घर तो घर का निशाँ तक बाकी नहीं सफदर
अब कभी वतन में जाएंगे तो मेहमाँ होंगे “
वो चले गए तो लुटियंस जोन के एक मीडिया मुग़ल मिल गए ।जो फिलहाल बेरोजगार हैं हाल ही में एक टीवी चैंनल से निकाले जाने से, स्कॉच से सीधे ठर्रे पर आ गए अब फेसबुक पर वीडियो बनाकर डालते हैं और ट्विटर पर चहचाहते हुए काट खाने को दौड़ते हैं ।हजरत सो काल्ड “सेक्युलर वॉइस “के चैंपियन मानते हैं खुद को ।सूक्ष्म और सेलेक्टिव मसलों पर अपनी राय रखने वाले ये हजरत बड़े बड़े मामलों पर चुप रहते हैं ।ये जहाँ भी जाते हैं और जैसे ही बोलना शुरू करते हैं लोग उनसे एक ही सवाल करते हैं कि
“तब क्यों नहीं” ना बोले,ना लिखे,ना धरने पर बैठे ना देश छोड़ने की बात की जब कत्लो गारद बहुत बड़े पैमाने पर हुई थी”।
क्योंकि तब दौरों पर सब्सिडी बहुत थी,मुफ्त सहूलियतें बहुत थीं अब तो मुफ्त के मुशायरों में भी लोग सवाल उठाते हैं कि तब क्यों नहीं।
इधर देश के सियासी हलचल में उठा पटक हुई तो बहुतेरे समीकरण बदल गए जिन्हें दिल्ली में बिरयानी ऑफर होती थी अब जेल में खिचड़ी और पोहे पर गुजारा करना पड़ रहा है ।चार्टेड प्लेन से घूमने वाले लोग घरों में नजरबंद हैं ।उनके आका खुद बेचारे आलू टमाटर को मोहताज हैं उनको क्या देंगे ।उनकी हालत मोहल्ले के उस बच्चे की तरह है जो अपने से ताकतवर लड़के से भिड़ता है,एक बार पीटे जाने पर फिर ललकारता है कि हिम्मत है तो अबकी हाथ लगाकर दिखाओ ,वो फिर पिटता है,वो बार बार ऐसे ही ललकारता है और पिटता चला जाता है।उस पार वालों को और उस पार वालों से सहानभूति रखने वालों को अब समझना पड़ेगा कि ये न्यू इंडिया अब परमवीर चक्र विजेता विक्रम बत्रा की लाइन पर काफी पसंद करता है और अपना सब कुछ हासिल करने के लिये” ये दिल मांगे मोर ” कहता है ।अभी आवाज़ें उठी हैं, तो ये तिलमिलाहट है ,एक्शन होगा तब तो माशा अल्लाह,,,,
“आवाजे खल्क को नक्कारा -ए-खुदा समझो
जिसे आलम बजा कहे,उसे हक बजा समझो “
इन बदले समीकरणों में वीर रस के कवियों को थोड़ी मेहनत करनी पड़ रही है ,पिछले बीस सालों से सिर्फ कश्मीर में तिरंगा लहराने की कविताएं कंठस्थ करके गा रहे थे ,अब मुज़फ्फराबाद पर तिरंगे के लिये कविताएं लिखनी पड़ेगी ।पैरोडी वाले पहले फ़िल्मी गानों पर पैरोडी लिखते थे ,अब “तब क्यों नहीं”वालों पर पैरोडी लिख रहे हैं जैसे एक उत्साही युवा कवि ने पोस्ट किया कि
“पटक के मारो जो देश के खिलाफ बोले
हमारा मुल्क है किसी काले कौए की मचान थोड़े ही है”
मैं इसका कुछ मतलब समझ पाता तब तक एक दूसरे युवा कवि ने एक पैरोडी सुनायी
“ना जाने चाशनी क्यों रुक गयी है मेरी शायरी की
ये टीवी चैनल में ये बात बेहतर समझायी जाती है
दिन ब दिन हमारी कमाई क्यों गिरती चली गयी
क्यों शायरी में अब मलाई की शॉर्टेज पायी जाती है “
ऐसा ही कुछ हाल समीकरणों के बनने -बिगड़ने का है ।फ़िल्मी दुनिया में देश भक्ति की दो चार फ़िल्में हिट हुईं तो ट्रेड पर बारीक नजर रखने वाले सहम गये ।,कुछ साल पहले देश के छोटे छोटे मसलों पर बोलते थे और उससे पहले देश के बड़े बड़े मसलों पर बिलकुल नहीं बोलते थे अव्वल तो पहले खुद को कलाकार मानते थे ,नागरिक नहीं और दूसरे इस बात का भी ख्याल रखते थे कि बोलने से कहीं ऐसा ना हो कि जो मिलने वाला था,कहीं वो ना मिले तो ?
इस स्वर्णिम चुप्पी की उन्होंने खासी कीमत वसूली और सब कुछ हासिल किया जो उन्हें करना था।दुनिया भर में लोग बोल कर कुछ हासिल करते हैं हमारे देश में अतीत में लोगों ने चुप रहकर बहुत कुछ हासिल किया ।इसी स्वर्णिम चुप्पी से काफी कुछ बटोरने के बाद अब वो नागरिक बन चुके हैं और संविधान की दुहाई दे रहे हैं ।इस सेकुलरिज्म और संविधान के एक चैंपियन की अभिनेत्री बेटी ने कुछ साल पहले एक टीवी कार्यक्रम में प्रणव मुखर्जी को भारत का प्रधान मंत्री बताया था ।और तीन शादियां कर चुके तीन तलाक के प्रबल विरोधी इन हजरात के लख्ते जिगर मुम्बई बम हमले के अभियुक्त के मित्र बताये गये थे मीडिया रिपोर्ट्स में ।घर नहीं सम्भलता देश सम्भालने का ठेका ले रखा है ,एक मशहूर शेर इनकी हालत बताता है
“घर को सजाने का तसव्वुर तो बहुत बाद का है
पहले ये तय हो कि इस घर को बचाएं कैसे “।
सो नागरिक बनते ही इन्होंने देश की दुखती रग को छेड़ दिया ,लोगों के गुस्से को हवा दे दी लेकिन नफरतों की खेती कब तक ।जनता ने इनके काम का बहिष्कार किया ,तो इन्हें काम मिलना बन्द हो गया ये लोग भूल गए थे कि जो जनता सर माथे पर बिठाती है वही उतार भी देती है और लोकतंत्र में जनता ही जनार्दन होती है ,जलसों और मुशायरों में बोलने के अवसर से नहीं कोई बड़ा बन सकता है ।
सबके अपने अपने फलसफे हैं आजकल अमिताभ बच्चन साहब फरमा रहे हैं कि “हमें अपने लड़कों की परवरिश ऐसे करनी चाहिये कि वे अपने गुस्से पर काबू पा सकें “।फेसबुक पर किसी ने उन्हें टैग करते हुए दीवार,त्रिशूल और अग्निपथ का पोस्टर टैग करते हुए पूछा है “सर,
तब क्यों नहीं “
दिलीप कुमार