शौर्य गान
जय हिन्द की सेना
उठे जो मातृ भूमि पर, कुदृष्टि पाक चीन की।
तो बात होगी आर-पार, लुट चुकी जमीन की।।
उबल रहा लहू रगों में, भारती के लाल का।
खुलेगा दुश्मनों के सिर, कराल गाल काल का।।
पनाह माँगता फिरेगा, हिन्द की दहाड़ से।
उठेगा अग्नि जलजला, वतन के हर पहाड़ से।।
बढेगा हिन्द का जवान, युद्घ बाँध जब कफन।
रक्त से सनेगी भूमि, दुश्मनों के सिर दफन।।
उठो कि वक्त आ गया है, वीर तुम कसो कमर।
शत्रु को भी देखने दो, हिन्द वीर का क़हर।।
देश की अखण्ड आन, बान शान के लिए।
तुम बनो प्रचंड, दुश्मनों की जान के लिए।।
अदम्य शौर्य पुंज तुम, अमर्त्य वीर पुत्र हो।
रक्त माँगती है भूमि, पुण्य पथ पवित्र हो।।
राष्ट्र भक्त नौजवान, जिन्दगी को वार दो।
असंख्य शत्रुओं के शीश, देह से उतार दो।।
भारती पुकारती है, शत्रु पग पछाड़ दो।
मातृ भूमि तन छुये, वहीं जमीं में गाड़ दो।।
दृढ़ प्रतिज्ञ शूर वीर, अस्त्र शस्त्र वार से।
खींच दो लकीर अग्नि पंथ रक्त धार से।।
प्रयाण गीत
युद्धघोष हो गया कि शत्रु द्वार पर खड़े
मातृभूमि के सपूत साहसी निकल पड़े
भुजा भुजा फड़क उठी दमक उठे समुच्च भाल
सैन्य दल निकल पड़ा सहम उठा कराल काल
अंग-अंग जंग अस्त्र-शस्त्र से सजे हुए
कि चल पड़े सवेग वीर राष्ट्र ध्वज लिए हुए
असंख्य सिंह चल पड़े हैं शत्रु आँत खींचने
मातृभूमि के लिए लहू से भूमि सींचने
असीम शौर्य शक्ति सिन्धु आन बान के लिए
मृत्यु व्याहने चले हैं राष्ट्र शान के लिए
मातृ धातृ गर्व से ललाट रक्त रोलियाँ
निकल पड़े प्रवीर पंथ झेलने को गोलियाँ
पुलक-पुलक सगर्व स्नेह युक्त मात भारती
प्रदीप्त प्राण-प्राण शक्ति आरती उतारती
कामना फलित हुई सुजन्म आज धन्य है
वीर पंथ पग बढ़े वो साधना अनन्य है
स्वजन से हो विरक्त छोड़ तात मात धातृ बाल
अग्नि के गुबार की तनी हुयी प्रचण्ड नाल
चल पड़े हैं धीर वीर शीश-शीश वारने
मचल रहा स्वदेश सिन्धु वीर पद पखारने
कुचक्र दुश्मनों का तोड़ने चले पहाड़ से
बेरहम उदात्त काल सिंह की दहाड़ से
रगों में दामिनी प्रवाह आन-बान-शान से
वो खेलने चले हैं वीर दुश्मनों की जान से
थरथरा रही दिशा दहाड़ घन निनाद सी
कि रौंदते पहाड़ को चले हैं वीर साहसी
अदम्य जोश रोश युक्त नेत्र ज्वाल जलजला
प्रवीर मातृ ऋण उतारने सवेग बढ़ चला
कुबेर मिश्रा