रात के स्याह आंगन में
चांदनी दूर दूर तक
बिखरी हो फूलों की तरह
अंतहीन आकाश के चादर पर
मंद मंद बयार में
साये शाखाओं के लहराकर
एक दूसरे को
ले रहें हो आगोश में
लालटेन कि पवित्र रोशनी में
चांद उतर आता है
जमीन पर
तब्दील हो जाता है
तुम्हारे चेहरे में
और मैं अपलक
साक्षी होता हूं
ब्रह्माण्ड के इस
पवित्र और खूबसूरत
नज़ारे का
(राजेश सिंह)