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Home कथा-कहानी

झंझावात……

Janlok india times news bureau by Janlok india times news bureau
July 8, 2019
in कथा-कहानी
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( 1 )

      अभी रोटी का पहला कौर तोड़ा ही था रेणु ने कि कानो में वही कर्कश आवाज गूंजी, “बस खाने बैठ गयी, ये नहीं चार बज गए, पति को चाय का भी पूछ लें, पर नहीं, महारानी को तो अपने अलावा किसी से कोई मतलब ही नहीं, अब बैठी क्या हो उठ कर चाय बनाओ … और भी बहुत से काम है मुझे, तुम्हारी तरह खाली नहीं बैठता दिन भर”

आँख भर आयी रेणु की … लगा जोर से चिल्ला पड़े कि चार बजे तो है, पर मैंने अब  तक कुछ भी नहीं खाया, बस सुबह आधा कप चाय पी थी, वो भी ठंडी हो गयी थी और तुम अब तक दो चाय, नाश्ते में  उपमा और गाजर का हलवा, दो बार जूस, पपीता, दोपहर का खाना फिर छाछ भी पी चुके हो, दिन भर काम कर के भूखी प्यासी अब खाने  बैठी हूँ ।

पहले खाने तो दो, फिर बनाऊंगी चाय

पर आवाज जैसे गले मे फंस कर रह गयी

चुपचाप थाली सरका कर वह उठ खड़ी हुई अपने पति परमेश्वर के लिए चाय बनाने ‍।

ये क्या बनाया है, अभी तक सीख नहीं पायी कि मैं कैसी चाय पीता हूँ, पूरा डब्बा ही उलट दिया चीनी का, तुम तो चाहती ही नहीं कि मैं  शांति से चाय भी पी लूँ ।

कहते कहते पूरा कप सुड़क कर रमेश ने जलती हुई आंखों से रेणु को देखा और बाहर चला गया ।

रेणु की थाली जो अब तक कमरे के कोने में पड़ी थी, अनमने ढंग से उसे रेणु ने उठाया, रोटी ठंडी होकर कड़ी हो गयी थी, फिर भी जैसे तैसे उसने खाना शुरू कर दिया, थोड़ी ही देर में राहुल आ जायेगा स्कूल से, उसे सोच कर रेणु के उदास चेहरे पर मुस्कुराहट  फैल गयी ।

( 2 )

पांच वर्ष का राहुल, अभी घर मे पैर रखते ही चिल्लाना शुरू कर देगा  –  

‘मम्मी दाल चावल दो’ 

एक बड़े से कटोरे में दाल चावल और उसमें थोड़ी चीनी मिलाकर, चम्मच से खाना, राहुल की दोपहर का मनपसंद भोजन था ।

पर जिस दिन कभी दाल चावल नही बनते, उस दिन तो वो पूरा घर सर पे उठा लेता ।

ऐसे में रेणु कभी कभी अपने सामने वाली जेठानी से थोड़े से दालचावल ले आती, क्यों कि उनके यहां तो चावल रोज ही बनते थे और बदले में उनका छोटा बेटा तुरन्त ही रेणु की रसोई में आ उसकी बनाई सब्जी ले जाता, उसे रेणु के हाथ की बनी सब्जी बहुत पसंद थी ।

राहुल को आते ही खाना दे वो फटाफट रसोई साफ करने लग जाती, फिर उसे पढ़ाना भी होता था ।

नीचे दरी बिछा वो कपड़े इस्त्री करते करते उसके स्कूल का होमवर्क पूरा करवाती, और बीच बीच मे जाने कितनी ही बार उठ कर चाय बनाती ऑफिस के लिए …

नीचे ऑफिस और उसके ऊपर तीन मंजिला घर

दिन भर ऑफिस से हुकुम आता ही रहता चाय, ठंडा, नाश्ते के लिये पूरा दिन इसी झमेले में ही बीत जाता । फिर उसके ससुर का भी अलग समय होता चाय पानी का

बस जैसे तैसे वो इस्त्री कर, राहुल को पढ़ा पाती

इसी में दिन ढल जाता

फिर रात के भोजन की तैयारी

कहने को तो करोड़ पति घर की बहू थी, पर उसकी जिंदगी तो इतना पैसा होने के बावजूद भी नही बदली थी ।

इसी समाज का एक सच, जो शायद हर नारी ने कहीं न कहीं जिया है

क्यों चाह कर भी वो कुछ नही कर पाती

( 3 )

पांच भाई बहनों में सबसे छोटी थी रेणु, बम्बई जैसी महानगरी में पली बढ़ी थी

पढ़ने में सदैव अच्छी रही और बदमाशियों में भी, अपने गैंग की लीडर हुआ करती थी वो ।

जाने कितनी ही फिल्में उसने स्कूल ‘ बंक ‘ कर के देखी थी

और ये फिल्में देखने के लिए भी सब लड़के लड़कियों अपने अपने पैसे एक टेबल पर रख देते, फिर उन्हें गिना जाता और उसी हिसाब से टिकट लेने का फैसला भी होता ।

कभी बालकनी तो कभी एकदम परदे के ठीक सामने बैठ कर फ़िल्म देखी जाती ।

तीन रुपये में आगे की टिकट, पांच रुपये में बालकनी, कुछ बचा तो मध्यांतर में वड़ा पाव खाया जाता, वरना ऐसे ही वापसी

ये नही कि रेणु सिर्फ खर्च ही करती थी, बड़ी बरकत थी उसके हाथों में दसवीं में स्कूल के बाद  ‘एक्स्ट्रा क्लास ‘ जाने के लिए पच्चीस पैसे मिलते थे उसे बस की टिकट के लिए, जिसे वो अक्सर पैदल जा कर बचा लेती ।

कभी कभार पन्द्रह पैसे जो उसके पिताजी देते, स्कूल की कैंटीन में खाने के लिए, वो भी उसके पास बड़ी एहतियात से पड़े रहते ।

चार पांच महीने में उसके पास सौ रुपये जमा हो ही जाते, जिसे वो अपनी मां की हथेली में बड़े गर्व के साथ रख देती ।

बहने, भाई, भाभी, मां, बाप के साथ भरे पूरे परिवार में रही रेणु सबकी चहेती थी ।

कब वो अपनी भाभी को चुप से भेलपुरी ला देती, किसी को पता ही नही चलता, भतीजों के स्कूल का होमवर्क तो उसी के जिम्मे था ।

बहुत मजे से कट रही थी जिंदगी

इसी बीच छोटे भाई का विवाह तय हुआ

अब पिताजी को घर मे कमरे की कमी का अहसास हुआ । तय हुआ कि ये फ्लैट बेच कर दूसरा बड़ा फ्लैट लिया जा ।

नया घर, ढेरों काम, शादी का खर्च, इन सबके बीच रेणु के कॉलेज का एडमिशन मानो सबके लिए फिजूलखर्ची ही थी ।

मां ने तो साफ कह दिया था, पढ़ लिख कर क्या कलेक्टर बनना है, घर के काम काज भी तो आने चाहिए ।

अब इतना खर्चा और फिर कॉलेज में नित नए कपड़ो का खर्च, ट्रैन का पास, लेट शेट हुई तो उसका टेंशन अलग

पढ़ना अच्छी बात है, मानती हूं

पर हम न पढ़ा पाएंगे तुम्हें …

और बोझल मन से रेणु भी मान ही गयी ।

करती भी क्या, हां उसने एक सिलाई स्कूल जाना शुरू कर दिया

जल्द ही मां के शब्दों में दर्जी बन गयी थी

घर भर के कपड़े अब वही सीती ।

(  4  )

बहुत कुछ धीरे धीरे बदलता गया, भाई का विवाह हो गया

रेणु का आगे पढ़ना तो रुक गया, पर उसकी पढ़ने की चाह नही रुक पायी

किताबें, समाचार पत्र, उपन्यास अब सभी कुछ पढ़ने की फेहरिस्त में शामिल था ।

लिखने का शौक भी अब रफ्तार पकड़ने लगा

न जाने क्या क्या ख्यालों के ताने बाने अब पन्नो पर उतरने लगे

घर के काम, सिलाई , और पढ़ना लिखना

रेणु मानो अपनी दुनिया मे रच बस गयी

यदा कदा अब उसके विवाह की भी चर्चा घर मे होने लगी

माँ, पिताजी अब अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त होना चाहते थे

या यूं कहें कि बेटी का बोझ सर से उतरे तो गंगा नहाये वाली स्थिति थी

बड़े भाई ने कहा ” इतनी दुबली पतली है, और सांवली भी, अच्छा रिश्ता शायद ही मिले, शादी में पैसे ज्यादा ही लगेंगे अगर लड़का अच्छा ढुडोगे “

यहां वहां पूछताछ हुई तो एक डॉक्टर लड़के के बारे में पता चला ।

माँ ने पिताजी को सिखा पढ़ा कर टोह लेने भेजा, दसियों ताकीद के साथ कि बात पक्की ही कर आये

पिताजी आये तो उनके हावभाव से ही पूरी बात समझ आ गयी कि  बात नही बनी

डॉक्टर है तो एक लाख नगद तो देना ही पड़ेगा

सो बात वहीं खत्म हो गयी

अब जिसके भाग्य में विधाता ने राजकुमार लिखा हो, उसका विवाह डॉक्टर से कैसे हो जाता

खैर, राजकुमार जैसे रमेश का रिश्ता आ ही गया उसके लिये

वो भी घर बैठे

वो भी बिना दहेज की मांग के

अब तो रेणु के भाग सराहे जाने लगे

सांवली बेटी के साथ गोरा चिट्टा जमाई

माँ पिताजी इसके आगे कुछ न सोच सके

न पढ़ाई देखी न सीरत

गोरी चमड़ी सब अवगुण लील गयी

(5)

दुनिया दारी से अंजान रेणु को विवाह सम्बंधी हिदायतें मिलने लगी

उन्नीस वर्ष की ही तो हुई थी वो अभी

और एक दिन रमेश अपने पूरे परिवार के साथ पहुंच गया उसे देखने

घर वालों ने कोई कमी न रखी उनकी आवभगत में, बेटी वाले जो थे, वो भी  सावँली बेटी वाले

और रिश्ता पक्का हो गया

रमेश की माँ बचपन मे ही गुजर गई थी, ननिहाल में ही बड़ा हुआ था, एक बड़ा भाई और दो बड़ी बहने, सबसे छोटा और लाडला

माँ तो इसी में ही खुश थी कि चलो, सास का कोई झंझट ही नही

और फिर ननिहाल की जायदाद भी तो दोनों भाइयों की ही थी

बहने तो अपने घर चली गयी थी

बड़ा भाई नानी से मनमुटाव के कारण अलग रहता था

तो शायद पूरी की पूरी ही मेरी ही बेटी के भाग्य में हो, ये सोचती माँ ने रेणु के इस सवाल को भी अनसुना कर दिया कि लड़का तो अभी नोवीं में ही पढ़ता है, वो भी उन्नीस की उम्र में

सब कुछ सामने था, पर सबकी आंख जैसे बंद थी

और ऐसे ही एक दिन रेणु की सगाई हो गयी

और तीन महीने बाद विवाह की तारीख भी तय हो गयी

सगाई करवा कर रमेश फिर लौट गया अपनी बड़ी बहन के पास

वो वही पढ़ता था, गुजरात मे

एक दिन घर के पते पर रमेश की चिट्ठी आयी

भाभियां ठिठोली करने लगी

इस प्रेम पत्र को लेकर

तो माँ ने उन्हें चुप कराकर पत्र रेणु को लाकर दे दिया

एक अंजान सी आस के साथ रेणु ने वो अंतर्देशीय खोला

लिखा था रेणु को आशीर्वाद

आज मैंने अपनी बहन से लड़ाई की

उन्होंने मुझे मारा तो मैंने भी उन्हें दो मुक्के मारे

वो मुझे पैसे नही दे रही थी

जल्द ही हमारी शादी हो जाएगी तो मुझे पढना नही पड़ेगा और

तब नानी को भी मुझे पैसे देने ही पड़ेंगे

तुम भी मुझे पत्र लिखना

रमेश

इन चार लाइनों में जाने कितनी ही मात्राओं की गलतियां थी

इतनी खराब लिखावट

और उन सबसे भी खतरनाक उसमे लिखी बातें

अपने से बीस वर्ष बड़ी बहन को मारना ?????

माँ , देखो ये पत्र

मैं ये शादी नही करूंगी

माँ  ने पत्र पढ़ कर तह किया

और बोली “दिन भर पढ़ते पढ़ते तेरा दिमाग खराब हो गया है, खुद पर घमंड हो गया है, अरे तेरी लिखावट अच्छी है तो क्या हुआ

चार लाइने लिख लेती हो तो क्या हुआ

मर्द में ये गुण नही देखे जाते

और तेरा भी ये लिखने पढ़ने का शौक क्या काम आएगा जिंदगी में

रोटी बनाना सीख

वही काम आएगा

कितने समझदार हैं जमाईबाबू

तुझे  आशीष दिए हैं

एक ही पल में रेणु के भीतर का सब टूट सा गया

( 6 )

घर मे विवाह की तैयारियां शुरू हो गयी, गहने माँ के पास पड़े ही थे पहले से, और कुछ खरीद कर बची कमी भी पूरी कर दी गयी

कपड़े लत्ते का खरीदना रेणु के जिम्मे था हमेशा की ही तरह

खरीदारी में वो शुरू से निपुण थी

भाव भी खूब कम करा लेती दुकानदार से

अब ढेरों साड़ियों के पेटीकोट, ब्लाऊज सीना भी उसी के जिम्मे था

रात में वो सब साड़ियों के फॉल लगाती और दिन में मशीन ले के बैठ जाती

तो पूरा घर जुटा था इन तीन महीनों में सब काम कर लेने के लिए

भाई बिना पिताजी को बताए एक ब्लैक एंड वाइट टेलीविजन ले आया अपनी छोटी बहन के लिए, एक ‘हॉल’ भी बुक कर

लिया गया था विवाह के लिए,

विवाह के बस दस दिन ही बचे थे कि अचानक रमेश को घर आया देख सब  चौक पड़े

माँ किसी अनहोनी की आशंका से देवता मनाने लगी

भाभी ने ही पूछा कि क्या बात है

अचानक ?

तो रमेश ने कहा कि वो फ़िल्म देखने जा रहा है तो रेणु को भी ले जाना चाहता है

माँ की तो जैसे सांस में सांस आयी

झटपट रेणु को तैयार होने का हुक्म सुना दिया बिना उसकी मर्जी जाने

अनमने ढंग से कपडे बदल रेणु चल पड़ी उसके साथ

पूरे रास्ते कोई बात नही हुई

सिनेमा घर  भी पहुंच गए

‘राम तेरी गंगा मैली’ फ़िल्म लगी हुई थी

रमेश टिकट लाने चला गया, बिना कुछ बोले

टिकट लेकर आया और चल दिया अंदर की ओर

रेणु अचकचाकर उसके पीछे दौड़ी

‘ साथ आयी हो तो साथ ही रहो

कहाँ ध्यान  है तुम्हारा ’

 ‘ जी ‘

रेणु अपनी भरी आंखों से बस इतना ही बोल पायी

उसने तो सुना था और फिल्मों में भी देखा था कि लड़का लड़की मिलते हैं तो कितने खुश होते हैं, कितनी बातें करते हैं

पर ये क्या हो रहा है उसके साथ

छोटी छोटी बातों पर आसमान सिर पर उठा लेने वाली रेणु बस आज चुप थी

जाने कब फ़िल्म शुरू हुई, उसे पता ही नही चला

अचानक उसे लगा कि उसके हैंड बेग की चैन कोई खोल रहा है

उसने जल्दी से बेग खींचा तो रमेश की आवाज सुनाई दी ‘ क्या कर रही हो , बेग क्यों खींच रही हो

पैसे तो निकालने दो ‘

पैसे , पैसे क्यों

अरे , पैसे चाहिए थोड़े, समोसे के लिए

टिकट के भी तो लगे हैं

और मां के दिये पचास रुपये रमेश के हवाले हो गए

फ़िल्म दिखाने वो लाया

और पैसे  रेणु दे

कुछ समझ नही आया उसे

लड़के तो अपनी होने वाली पत्नी पर जाने कितना खर्च करते हैं

और यहां रमेश उसी की बेग साफ कर गया

पूरी फिल्म के दौरान और कोई बात नही हुई

दोनों समोसे भी रमेश अकेला ही गटक गया

फ़िल्म खत्म हुई, रमेश उसे घर छोड़ कर चला गया

भाभी बड़ी खोजी मुस्कुराहट से उसे पूछ रही थी

क्या क्या हुआ

क्या बातें की अकेले में

आज तो तुम्हे नींद नही आएगी देखना

प्रेम का नशा है ही ऐसा

अब रेणु क्या जवाब देती भाभी की बातों का

पर हां, नींद तो उसे रात भर नही ही आयी

( 7 )

अब तो गावँ से मेहमान भी आने शुरू हो गए थे

सब के सब जमाईबाबु की सुंदरता पर मोहित हो रेणु के भाग्य को सराह रहे थे

घुटने तक की चोटी को समेट पार्लर वाली ने जूड़ा बना दिया, मरून बनारसी साड़ी में रेणु सुंदर लग रही थी

पर रमेश के आगे उसका ये सजना मानो व्यर्थ ही गया

सब मेहमान  दबी जुबान में बेमेल जोड़ी बता रहे थे

जैसे तैसे फेरे और तमाम रस्मे निपटी

अब विदाई का वक़्त था

माँ रोते रोते ही रेणु को नये घर की बाबत सौ हिदायतें दे रही थी

चुप रहना, दांत न दिखाना ज्यादा, काम करना

अब तो रेणु की रुलाई भी फूट पड़ी, मायके से दूर होने की वजह से नही

रमेश को अपने पति रूप में देखकर

कार में बैठ पांच मिनिट में ही ससुराल पहुंच गई रेणु

बड़ी मुश्किल से आधा कि.मी. ही थी उसकी ससुराल

जाने कितनी रस्मो से निपटी रेणु को कमरे में जा कर सोने का आदेश मिला

दिन भर की थकी हारी रेणु के कमरे में तीन औरते पहले ही मौजूद थी, रात के तीन बज रहे थे तब

उसी पलँग के कोने पर गठरी बन पड़ी रेणु को तुरन्त ही नींद आ गयी

करीब पांच बजे शोर सुन उसकी आंख खुली तो देखा वो तीनो औरते गायब थी

हड़बड़ा कर वो बाहर पहुंची जहां से आवाज आ रही थी, वहां उसने जो देखा तो होश उड़ गये उसके

उसके ससुर अपना सर दीवार पर पटक रहे थे, रमेश और उसकी दोनों बहनों में गुत्थमगुत्थी हो रही थी

उसके जेठ गालियां निकाल रहे थे

रेणु को कुछ समझ नही आया कि वो क्या करें

डर के वो वापस चुपचाप अंदर भाग गयी

थोड़ी देर बाद जब सब शांत हो गया तो एक औरत ने उसे ये सब अपने मायके में न बताने की हिदायत देते हुए नहाने का आदेश सुना दिया

नहा कर फिर जाने कितने रस्मो रिवाज से गुजरती रेणु को  दोपहर हो गयी थी

पर उसे अब तक चाय भी न मिली थी

वही रमेश उसी के सामने बैठा दो बार चाय सुड़क चुका था, उससे पूछा तक नही

और वो नयी बहु, किसी से कुछ कहती भी कैसे

दो बजे के करीब अब उसे भोजन परोसा गया, जो उसे सब औरतों के साथ एक ही थाली में खाना था

यह भी एक रस्म ही थी

सबके साथ वो ठीक से खा भी नही पायी

तभी वहां रमेश की नानी का आना जैसे रेणु के लिए वरदान साबित हुआ

उठो तुम सब यहां से, बहु को आराम करने दो जरा

और सब औरते एक एक कर बाहर चली गयी

नानी ने उसे दरवाजा बंद कर सोने को कहा और बाहर निकल गयी

कुंडी लगाते ही रेणु की रुलाई फूट पड़ी, तो उसने अपने मुंह पर हाथ लगा लिया कि आवाज बाहर न चली जाए

रोते रोते कब आंख लगी पता ही नही चला उसे

दरवाजा पीटे जाने की आवाज सुन कर नींद टूटी तो भाग कर दरवाजा खोला

पल्लू सर पर लो बहु

नानी की आवाज आयी तो सुध आयी कि वो अब कहां हैं

( 8 )

शाम के पांच बज रहे है बहु, जल्दी तैयार हो जा, तेरा भाई आने वाला है तुझे लेने

पग फेरे की रस्म के लिए

सुनते ही जैसे पंख लग गये उसे

जल्द ही बाल ठीक कर वो तैयार हो गयी

अब इंतजार कठिन हो रहा था

इस कैद से मानो वो भाग जाना चाहती थी

थोड़ी ही देर में भाई भी आ गया

और वो तुरन्त चल पड़ी उसके साथ अपने घर

दस मिनट का ही रास्ता तो था, घर पहुंची तो चैन की सांस आयी

माँ और भाभियों के सवालों की झड़ी लग गयी

क्या किया, क्या खाया, ससुराल वाले कैसे है, जमाई बाबु क्या बोले

रुआंसी सी रेणु सर झुका के बैठ गयी

घर मे मेहमानों का जमावड़ा था अब तक, सब के कल की टिकट थी वापसी की

चाहते हुए भी रेणु किसी को कुछ न बता पायी चाय नाश्ता कर अपनी शादी में मिले तोहफे देखने मे व्यस्त रेणु के कानों में रमेश की आवाज पड़ी तो वो सिहर गयी

‘चल , जल्दी से खाना खा, फिर चलना है ‘

जैसे तैसे खाना निगल, सबसे मिल, रोते हुए निकल पड़ी थी अब वो नए सफर पर  ‘अपने घर’ पर

रात के दस बज रहे थे तब सब सोने की तैयारी में थे, अपने कमरे में पहुंची तो फूलों से सजा कमरा उसका स्वागत कर रहा था

फ़ोटो ग्राफर भी बैठा हुआ था कुर्सी पर भाभी और सहेलियों की बातें अचानक याद हो आयी तो शर्म सी उभर आयी चेहरे पर हल्की सी हंसी के साथ

अलग अलग पोज़ में फोटो ली गयी उसकी, रमेश की सब कुछ बड़ा अच्छा लग रहा था उसे बस अब सो जाओ सब, नानी की आवाज सुन फोटोग्राफर अपना सामान समेटने लगा सजी धजी रेणु वहीं पलँग के कोने में सिमटी बैठी रही

कितने पैसे मिले तुझे लिफाफे में

रमेश ने पूछा तो वो सपनो से बाहर निकली

जी … यही कोई  आठ हजार के आस पास

लायी हो ??

मम्मी ने चार हजार दिए हैं अलग से..

ठीक …

आओ सोते हैं …

जी …

सारे सपने फुस्स !!!!!!!

फिर एक पीड़ा भरा तूफान गुजरा कमरे में

इन पांच मिनटों में जाने तन और मन से रेणु मर ही गयी

रमेश मुंह घुमा कर सो चुका था

और पत्थर बनी रेणु, अपने स्त्री होने की सजा पा, ठगी सी बैठी थी

भाभी, सहेली की ठिठोली, बातें कानो में गूंज रही थी

सहमी सी रेणु सुबह तक इस हादसे में डूबी रही

सुबह हुई, सब मेहमानों के जाने की हड़बड़ाहट मची थी

उसे ढेरों आशीष दे सब जा रहे थे, और वो चुपचाप सबके पैर छू न फलने वाले आशीष ले रही थी

दिन भर उसे रमेश कहीं न दिखा

दिन सामान्य सा गुजर गया

दोनों वक़्त का भोजन उसके कमरे में आ गया था

वो सर पर पल्लु लिए गठरी बनी वही बैठी नींद की झपकियां लेती रही

निर्मला मोहन, C 302, रहेजा रेसिडेंसीअवंति विहार, पोस्ट : रविग्राम – 492 006 रायपुर
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May 8, 2025
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