1 वर्षा गान
दिनमान प्रचंड प्रकोप घटा।
बादल जल धार पयोधि सटा।।
शशि शेखर नृत्य उमंग उठे।
लहरात छटा नभ शम्भु जटा।।
सावन जल थल सम भाव पटा।
घहरात घटा कहुँ मेघ फटा।।
सर पोखर सब लहराय उठे।
उतरी सुरपुर की दिव्य छटा।।
दादुर जल कुक्कुट झींगुर रव।
तरु पालव कोंपल रति अभिनव।।
छवि दृश्य अलौकिक भूमि जगे।
बरखा ऋतु गीत पुनीत विभव।।
लहरात तरंगिणि धार चली।
जलनिधि हिय प्रेम पुकार फली।।
तटबंध झकोरत बोरत सब।
प्रियतम आलिंगन धाय मिली।।
पछुवा पुरवा पुरजोर बही।
घन गर्जन तर्जन शोर मही।।
विचलित मन काम लगाम कटे।
मनसिज निज स्यंदन डोर गही।।
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2 बरखा गीत
सावन जग जल प्लावित बिसात।
धरती कर लेती आत्मसात।।
हो उठे मुखर नव जल प्रपात।
खिलखिला उठे सब हरित पात।।
हो रही वृष्टि मूसलाधार।
तटबंध हो रहे तार-तार।।
गिरि रुदन चल पड़ी अश्रु धार।
सरिता सवेग उमगी अपार।।
रवि किरणों का धूमिल निखार।
कहुँ गूँज रही पपिहा पुकार।।
घन गरजत नभ चढ़ बार-बार।
तन-मन भीगे पावस फुहार।।
सब नगर गाँव मग धार बहे।
बहु भौतिक बंध प्रबंध ढहे।।
जग स्यंदन वरुण कमान गहे।
जनु सिन्धु धरनि लहराय रहे।।
तरु किसलय में छाई उमंग।
बरखा ने बदले विविध ढंग।।
जीवन पर छाया मदन रंग।
धरती अम्बर मिल गये संग।।
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3 वर्षा सौन्दर्य
उमड़-घुमड़ कर बरसत, नभ घन घोर।
कोकिल कूजत नाचत, हरषत मोर।।
चहुँ दिशि दमकत दामिनि, सागर डोल।
पवन अवनि सिहरावत, सावन बोल।।
बूँद रजत सम बिहरत, धरनि बटोर।
चातक निशि दिन हहरत, स्वाती भोर।।
मेह राग अति शोभित, अम्बर खोल।
रूप राशि छवि अनुपम, करत किलोल।।
सम जल थल सुषुमाकर, सुखद न थोर।
भीग अंग रति कामिनि, नैनन कोर।।
भामिनि थिरक चाल श्रुति, कुंडल लोल।
सीप माल उर अरुणिम, लसत कपोल।।
मनसिज सर संधानत, जनु क्षिति छोर।
धावत सरिता जलनिधि, तट-पट तोर।।
सींचत उपमा रस मय, मुख छवि गोल।
टूटत संयम पल-पल, रूपसि मोल।।
निरखत गति कुसुमाकर, भाव विभोर।
श्याम राधिका बिहँसत, पावस जोर।।
वाद्य यंत्र रव मुखरित, सरगम तोल।
भूमि हरित तृन सरसिज, मधु रस घोल।।
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कुबेर मिश्र
मुंबई