सरस्वती वंदना
हंस पे सवार वाद्य रव मधुर सितार,
शुभ्र वस्त्र का निखार देवि ज्ञान बुद्धि दायिनी।
छंद रस की धार सृष्टि चर अचर प्रसार,
शम्भु दृष्टि मार क्षार व्योम नाद अंक शायिनी।।
तुम जगत विलास जीव जिन्दगी का हास,
कृष्ण गोपिका का रास सिन्धु शान्ति में विराजती।
बुद्धि की हो आस तीन लोक का प्रकाश,
चिर प्रकृति की श्वास-श्वास बुधि विवेक ध्यान साजती।।
देवि हंस वाहिनी, हृदय तिमिर विनाशिनी।
जगत प्रकाश्य, विश्व मातृ शब्द-शब्द वासिनी।।
बुद्धि धृति दया क्षमा, सुधा सितार वादिनी।
अनन्त कोटि-कोटि सृष्टि, अंक मध्य लादिनी।।
शशि निशा सदृश हिमांशु, शुभ्र वस्त्र धारिणी।
समस्त विश्व मोहिनी, अज्ञान-ज्ञान कारिणी।।
चर-अचर सजीव-जीव, बुधि विवेक वारिणी।
नमामि मातु शारदे, समस्त त्रुटि विसारिणी।।
कृपा कटाक्ष सृष्टि-सृष्टि, जीव-जीव कामना।
नमन है देवि बार-बार, बाल हस्त थामना।।
ज्ञान देहु भक्ति देहु, शक्ति मुक्ति साधना।
ऊष्ण सर्द ऋतु समान, जिन्दगी को बाँधना।।
सरस्वती भवानि देवि, ज्ञान का प्रकाश दे।
सभी मनुष्य में असीम, साधना की प्यास दे।।
बाल बुद्धि सर्जना, जगत नवल विकास दे।
बढ़े विवेक शुद्ध भक्ति, नित्य शुभ्र आस दे।।
कुमारि अम्ब शारदे, नमस्य शब्द रूपिता।
बेबाक् वाक् दायिनी, त्रिदेव देव पूजिता।।
रचित समग्र छन्द लय, सितार धार नंदिता।
नमोस्तुते कुबेर कर, नमन जहान वंदिता।।
कुबेर मिश्र